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________________ भ्रम विध्वंसनम् । ० आयुष्यवत ! सा० हे श्रावको ! उ० अथवा हे साधु ना उपासको ! ध० हे धार्मिक ! ध० हे धर्म प्रिय । ए० एहवा प्रकार नी भाषा नं. ० असावद्य जा० यावत् प्र० दया पूर्ण अ० बांद्रे भा० बोलवा. २६६ अथ इहां पतले नामे करी श्रावक बोलावणो कह्यो । तिण नें नाम लेई इबोलावो । हे श्रावक ! हे उपासक ! हे धार्मिक ! हे धर्मप्रिय ! पहवा. नामा करी बोलावणो कह्यो । इहाँ श्रावक उपासक, धार्म्मिक, धर्म्मप्रिय. ए नाम का | पिण हे माहण इम माहण नाम श्रावक रो न कह्यो । ते भणी श्रावक ने माह किम कहीजे | अर्ने किणहिक ठामे टीका में माहण ना अर्थ प्रथम तो साधु इज कियो, अनें वीजो अर्थ अथवा श्रावक इम कियो छै पिण मूल अर्थ तो श्रमण माहण नों साधु इज कियो । अनें किहां एक माहण नों अर्थ श्रावक कियो ते पिण सुवा रे स्थानक कियो । पिण "बंदइ नर्मसइ सकारेइ. समाणेइ. कल्लाणं. मंगलं. देवयं. चेयं.' पतला पाठ का तिहां तथा आहार पाणी देवा ने ठामे माहण शब्द कह्यो । ति माह शब्द नों अर्थ श्रावक नथी कह्यो । अनें जे उत्तर अर्थ ( बीजो (अर्थ) बतावी दान देवा नें ठामे तथा वन्दना नमस्कार नें ठामे माहण नो अर्थ श्रावक थापे छै, ते तो एकान्त मिथ्वात्वी छै अनें टीका में तो अनेक बातां विरुद्ध छै । जिम आचाराङ्ग श्र० २ अ० १३० १० टीका में सचित्त लूण खाणो को छै । तथा तिहि उद्देश्ये रोग उपशमावा अर्थे साधु नें कारणे मांस नों वाह्य परि भोग करिवो को छै । तथा निशीथ नी चूर्णी में अनें द्वितीय पदे अर्थ में अनेक मोटा अणाचार कुशीलादिक पिण सेवण का है । इम टीका में. चूर्णी में. अर्थ में. तो अनेक बातां विरुद्ध कही छे । ते किम् मानिये । तिम सूत्र में तो १८ पाप थी निवृत्या ते मुनि नें माहण घणे ठामे कह्यो । ते सूत्र पाठ उत्थापी वन्दना नमस्कार नें ठामे तथा दान देवा ने ठामे माहण नों अर्थ श्रावक केई कहे ते किम मानिये । श्रावक ने तो माहण किणही सूत्र पाठ में कह्यो नथी । ते भणी श्रावक नें माहण किम थापिये । श्रावक ने नमस्कार करण री भगवान् री आज्ञा नहीं छै । ते माटे अम्वड ना चेलां नमस्कार कियो ते पीता रो छांदो छै । पिण धर्म हेते नहीं । जे अन्य तीर्थी ना वेष में केवल ज्ञान उपजे ते पिण उपदेश देवे नहीं । जो साधु श्रावक केवली जाणे तो पिण ते अन्य लिङ्ग थकां तिण नें प्रत्यक्ष-वन्दना नमस्कार करे नहीं । तेहनों अन्य मतो नो लिङ्ग छै ते मारे तो अम्ड तो अन्य लिङ्ग सहित
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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