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________________ भ्रम विध्वंसनम् । विऊत्तिवा भिक्खूति वा लुहेति वा तीरट्टीइवा चरण करण पारविदूत्तिवेमि । २६० ( सुयगडाङ्ग श्र० २ ० १ ) ए० एणी परे भि० साधु ज्ञाने करी जाखवा. ६० ज्ञाने करि जाणी ने पचक्खाएं करी पञ्चक्खिवो क० कर्मबंध नों कारण प० प्रत्याख्यान प्रज्ञाई पचक्खिश्रो वाह्य आभ्यंतर संग जेणे. प० जेणे असार करी जाणी ने डांड्यो गि० गृहवास. 'उ० इन्द्रिय उपशमाव्या. तथा स० पांच सुमति सहित ल० ज्ञानादि करी सहित स० सर्वदाकाल यलावंत से० ते एहवो चारित्रियो हुई व० ते कहिको तं ते कहे है. स० श्रमण तपस्वी तथा मित्र शत्रु ऊपर समता भाव जेहनों ते श्रम मा० प्राणिया ने महणो २ जेहनों उपदेश ते माहण. ख० क्षमावंत. दं० इंद्रिय नों दमणहार गु० त्रिहुं गुप्ति गुप्तो मु० निर्लोभी लोभ रहित. इ० जीव रक्षा करे ते ऋषि भु० जगत् ना स्वरूप नों जाणणहार कि सहू कोई कीर्त्ति करे ते कीर्त्ति वंत वि० परमार्थ थकी पण्डित भि० निरवद्य श्राहार नों लेणहार लु० अंतप्रांत श्राहार नों करणहार. ती० संसार नों तीर रूप मोक्ष तेहनों अर्थी च० चरण ते मूल गुण क० करण के उत्तर गुण तेहनों पा० पारगामी ते भणी चरण करण तहनों वि० जाणणहार ति० श्री सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी प्रत कहे हैं. अठे साधु रा १४ नाम वली कह्या - जेणे गृहस्थ वास त्याग्यो ते साधु नें इज पतले नामे वोलायो । जिण माहे माहण नाम साधु नों कह्यो पिण श्रावक नो नाम नथी चाल्यो । तिवारे कोई कहें- 'समणंवा माहणंवा" इहां वा शब्द अन्य पुरुष नी अपेक्षाय कह्यो छै, ते माटे श्रमण कहितां साधु अने माहण कहितां श्रावक कहीजे. इम कहे तेहनों उत्तर-जिम सूयगडाङ्ग श्रु० २ अ० १६ साधु रा नाम ४ पूर्वे का त्यां में पिण वा शब्द अन्य नाम नी अपेक्षाय कह्यो छै पिण अन्य पुरुष नी अपेक्षाय कह्यो नथी तथा लोगस्स में 'सुविहं च पुप्फदलं' कह्यो तिहां च शब्द ते सुविधनों नाम बीजो पुष्पदंत तेहनी अपेक्षाय कह्यो, पिण सुविध पुष्पदंत. ए वे तीर्थङ्कर नहीं । नवमा तीर्थङ्कर ना वे नाम छै तेही अपेक्षाय च शब्द को छै । तिम "खमणं वा माहणं वा" इहां वा शब्द साधु ना वे नाम नी अपेक्षाय जाणवो । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति १२ बोल सम्पूर्ण ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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