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________________ लैश्याऽधिकारः। २७६ - - ने. स० सत्कार देई ने. स० सन्मान देई में; क० कल्याणीक मङ्गलोक. दे. धर्मदेव चि० चित्त प्रसन्न कारी त० ते धर्माचार्य नी सेवा करी ने. फा० अवित जीव रहित. ए० बयालीस ४२ दोष विशुद्ध. अ० अन्नादिक. पा० पाणी २१ जाति ना खादिम फलादि. सा० मुख स्वाद भी जाति. ५० इणे करी प्रतिलाभी. ५० पाडिहारा ते गृहस्थ ने पाधा सूपिये. पी० वाजोट. का० पाटिया. सि. उपाश्रय. सं० तृणादिक नों सन्थारो. उ० तेयो करी निमन्त्री ई. अथ ईहाँ ३ आचार्य कह्या तिण में धर्माचार्य ने बन्दना नमस्कार सन्मान देणो कह्यो। कल्याणीक मंगलीक. "देवयं” कहितां धर्मदेव एतले सर्व नीवां ना नायक “चेइयं” कहितां भला मन ना हेतु प्रसन्न चित्त ना हेतु ते माटे चेइयं कह्या। एहवा उत्तम पुरुष जाणी धर्माचार्य नी सेवा करणी कही। प्रामुक एषणीक अशनादिक प्रतिलाभणो कह्यो। पड़िहारिया पीढ़ फलग शय्या सन्थारा देणा कह्या। एहवा गुणवन्त ते तो साधु इज छै। त्यां ने ट्ज धर्माचार्य कह्या । पिण श्रावक ने धर्माचार्य न कहो । इहाँ तो एहवा गुणवन्त साधु भासुक एषणीक आहार ना भोगवणहार में धर्माचार्य कह्या। अनें अम्बउ तो अप्रासुक अनेषणांक आहार नों भोगवणहार थो ते माटे अम्बड ने धर्माचार्य किम काहए। अनें अम्बड में जो धर्माचार्य कह्यो ते सन्यासी ना धर्म नों आचार्य अर्थात् सन्यासी नों धर्म नों उपदेशक छै। जिम भगवती श० १५ गोशाला रा श्रावको गोशालो धर्माचार्य कह्यो, तिम अम्वड रा चेलां रे अम्बड पिण सन्यासी राम ना आचार्य छै। ते निज गुरु जाणी ने नमस्कार कियो ते संसार री लौकिक रीति छै। पिण धर्भ हेते नहीं। इहां कोई कहे-अम्बड धर्माचार्य में नथी। तो कलानार्थ. शिल्पाचार्य, में अम्वड ने कही जे काई । तेहनों उत्तर-जिस अनुयोग द्वार में आवश्यक रा. निक्षेपां में द्रव्य आवश्यक रा तीन भेद कह्या। लोकिक. कुप्रावचनीक. लोकोत्तर. तिहां जे राजादिक प्रभाते स्नान ताम्बूलादिक करी देवकुल सभादिक जावे. से लौकिक द्रव्य आवश्यक १ अने सन्यासी आदिक पापंडी दिन उगे रुद्रादिक मी पूजा अवश्य करे. ते कुप्रावचनीक द्रव्य आवश्यक. २ अनें साधु ना गुण. रहित वेषधारी बेहूं टके आवश्यक कर. ते लोकोत्तर द्रव्य आवश्यक ३ अनें उत्तम साधु आवश्यक करे तेहनें भाव आवश्यक कहो. तेहने अनुसार धर्म आचार्य रा पिण ४ निक्षेपा में द्रव्य धर्ग आचार्य रा ३ भेद करवा । लौकिक १ कुप्रावच नीक २ लोकोत्तर ३. तिहां किला ना अने शिल्प ना सिखावणहार तो लौकिक द्रव्य
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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