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________________ कु • पृष्ठ ६१ ६२ तक । ७. बोल पडिला भेजा दलपज्जा, पाठ नों न्याय ( आचा० श्रु० २ अ० १३०० - बोल पृष्ठ ६१ से ६४ तक । पडिला भेजा - पड़िलाभ माणे पाठनो न्याय ( शा० अ० ५ ) ६ बोल पृष्ठ ६४ से ६५ तक । "पड़िलाभ " नाम देवानों छै गाथा ( सूय० ध्रु० २ म० ५ गा०-३३ ) से ६७ तक । १० बोल पृष्ठ ६६ से भाद्र कुमार विप्रां ने जिमाड्यां पाप कह्यो (सूय० श्रु० २ अ० ६ गा० ४३ ) ११ बोल पृष्ठ ६७ से ६८ तक । भग्गु ने पुत्र को - विप्र जिमायां तमतमा ( उत्त० अ० १४ गा० १२ ) १२ बोल पृष्ठ ६६ से ७० तक । भावक पिण विप्र जिमाडे छै पहनो न्याय ( भग० श० ८ उ० ६ ) १३ बोल पृष्ट ७० से ७३ तक । बर्तमान में इज मौन कही छै । ( सूय० श्रु० १ ० ११ गा० २०-२१ ) १४ बोल पृष्ठ ७३ से ७४ तक । ( सूय० श्रु० २ अ० ५ गा० ३३ ) चली पूर्व नों इज न्याय १५. बोल पृष्ठ ७४ से ७५ तक । नन्दन मणिहारा री दानशाला रो वर्णन ( ज्ञाता अ० १३ ) १६ बोल पृष्ठ ७५ से ७६ तक । सूत्र में दश दान ( ठा० ठा० १० ) १७ बोल पृष्ठ ७७ से ७८ तक । दश प्रकार धर्म (ठा० ठा० १०) दश स्थविर ( ठा० ठा० १० ) १८ नवविध पुण्य बन्ध (ठा० ठा० ६१) बोल पृष्ठ ७८ से ७६ तक ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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