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________________ भ्रम विध्वंसनम् । ए मट्टं पड़िसुणे मिति — अभ्युपगच्छामि यचैतस्याऽयोग्यस्याप्यभ्युपगमनं भगवत स्तदक्षीणागतया परिचये नेषत्स्नेहगर्भानुकम्पा सद्भावात् छमरथ तयाऽनागत दोवावगमा दवश्यं भावित्वा चैतस्येति भावनीयं मिति । २२४ अथ टीका में पिण को-ए अयोग्य नें भगवान् अङ्गीकार कीधो ते अक्षीण राग पणे करी. तेहना परिचय करी. स्नेह अनुकम्पा ना सद्भाव थी. अर्ने छद्मस्थ छै ते माटे आगमियां काल ना दोष ना अजाणवा थकी अङ्गीकार कीधो को राग. परिचय. सोह. अनुकम्पा कहीं । ते स्नेह अनुकम्पा कहो भावे मोह अनुकम्पा कहो । जो ए कार्य करवा योग्य होवे तो इम क्यां नें कहिता । तथा छनस्थ तीर्थङ्कर दीक्षा लेवे जिण दिन कोई साथ दीक्षा लेवे ते तो ठीक छै 1 पिण तठा पछे केवल ज्ञान उपना पहिला और में दीक्षा देवे नहीं । ठाणांग ठाणे ६ अर्थ में पहवी गाथा कही छै । "नपरोवएस विसया नय छउमत्था परोवएसपि दिति । नय सीस वग्गं दिवखति जिला जहा सव्वे" ठाणाङ्गना अर्थ में ए गाथा कही. तिहां इम को छै । छद्मस्थ तीर्थङ्कर पर उपदेश न चाले । भनें आप पिण आगला बली कह्यो । सर्व तीर्थङ्कर शिष्य वर्ग नें दीक्षा न देवे अ भगवन्त आप पोते दीक्षा लीची ते पाठ में कह्यो । । में उपदेश न देवे । तथा एहवूं अर्थ में कह्यो छै । पिण स्नेह अनें टीका में iगे करि अङ्गीकार कीधो चाल्यो है । अर्ने पाठ में पिण एहवो कह्यो । तीन वार तो अङ्गीकार कीधो नहीं । अनें चौथी वार में पड़िसुणेमि" पहवो पाठ कह्यो । प्रतिश्रुत नाम अङ्गीकार नों छै। केतला एक कहे - गोशाला रो वचन भगवान् सुण्यो पिण अङ्गीकार न कियो इम कहे ते सिद्धान्त ना अजाण है। अनें 'पडिलुणे” पाठ से अर्थ घणे ठामे अङ्गीकार को छै । ते पाठ लिखिये छै 1 जे भिक्खू रायाणं रायंतेपुरिया वजा उसंतो समणा ! गो खलु तुभं कप्पड़. रायंतेपुरं क्खि मित्तएवा,
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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