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________________ ( ग > १६ बोल पृष्ठ २७ से २६ तक । प्रथम गुणठाणो निरवद्य कर्म नो क्षयोपशम किहां कह्यो छै (सम० स० १४ ) १७ बोल पृष्ठ २६ से ३१ तक । अप्रमादी साधु ने अनारंभी कह्या छै ( भग० श० १३०१ ) १८ बोल पृष्ठ ३१ से ३५ तक । सोचाधिकारी तपस्यादि थी सम्यग्दृष्टि पावे पाठ ( भ० श० ६ ० १ ) १६ बोल पृष्ठ ३५ से ३६ तक । सूर्याभ ना अभियोगिया देवता भगवान् ने वांद्या (रापाप० दे० अ० ) २० बोल पृष्ठ ३६ से ३७ तक । स्कन्दक ने भगवद्वन्दना री गोतम री आज्ञा पाठ ( भ० श० २ उ०२ ) २१ बोल पृष्ठ ३८ से ३६ तक । स्कन्द ने आज्ञा से पाठ (भग० श० २ उ०१ ) २२ बोल पृष्ठ ३६ से ३६ तक । तामली री शुद्ध चिन्तवना पाठ ( भ० श० ३ उ० १ ) २३ बोल पृष्ठ ३० से ४० तक । सोमलऋषिनी चिन्तावना पाठ ( पुष्फिय० अ० ३ ) २४ बोल पृष्ठ ४० से ४१ तक । अनित्य चिन्तवना रे ऊपर सूत्र नों न्याय ( भ० श० १५ ) २५ बोल पृष्ठ ४१ से ४१ तक । ध्यान नी ४ चिन्तवना पाठ ( उवाई ) २६ बोल पृष्ठ ४२ से ४३ तक । बाल तप अकाम निर्जरा आज्ञामाही पाठ ( भ० श०८ उ०६ ) २७ बोल गोशाला रे पिण तपना करणहार स्थविर पाठ (डा० डा० ४ उ०२ ) पृष्ठ ४३ से ४४ तक ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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