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________________ भ्रम विध्वंसनम् । से भंते! हरिथस्य कुंथुस्सय समा चेव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ हन्ता गोयमा ! हत्थिस्स कुंथुस्सय जाव कज्जइ । से एवं वुच्चइ जाव कज्जइ. गोयमा ! अवि र पडुच्च से तेजाव कजइ ॥ ६ ॥ २१८ ( भगवती श० ७ उ० ८ ) से० ते. णू० निश्चय. भ० हे भगवन्त ! ह० हाथी ने अने. कुं० कुंथुया ने स सरोखी. चे० निश्चय. अ० अपञ्चखाण की क्रिया उपजे हां. गो० गौतम ! ह० हाथी ने . अने. कु० कुंथुया नें. सरीखी. अपञ्चखाण क्रिया उपजे से० ते. के० केहे अर्थे भं० भगवन्त ! ए० इम कही. जा० यावत. क० करे छे. हे गौतम! अ० अती प्रति आश्री नं. से० ते. ते करें. अथ हां हाथी कुंथुआ रे अव्रत नी क्रिया बरोबर कही । ते 'अती हाथी आश्री कही। पिण सर्व हाथी आश्री न कही। हाथी तो देशव्रती पिण छै । ते माटे इहां हाथी देशव्रती हाथी थकी तो कुंथुआ रे अब्रत नी क्रिया घणी छै । ते कुंथुआ रे वरोवर क्रिया कही । ते अन्नती हाथी आश्री कही। पिण सर्व हाथी आश्री नहीं कही। तिम कषाय कुशील नें अपड़िसेवी कह्यो । ते विशिष्ट परिणाम ते वेलां आश्री अपड़िसेवी कह्यो । तथा दीक्षा लेतां अथवा पुलाक वक्कुस पड़ि सेवणा तजी कषाय कुशील में आवें । ते वेलां आश्री अपड़िसेवी कह्यो जणाय छै । ते पिण सर्व कषाय कुशील चारित्रिया अपड़िसेवी नहीं । वली भगवती श० १० उ० १ पूर्वदिश ने विषे “नो धम्मत्थिकाए” एहवूं पाठ कह्यो । ते पूर्वदिशे सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय नहीं । पिण देश आश्री धर्मास्तिकाय छै । तिम कवाय कुशील नें पिण अपड़िसंबी कह्यो । ते विशिष्ट परिणाम ते आश्री अपड़िसेवी छै । पण सर्व कपाय कुशील चारित्रिया अपड़िसेवी नहीं । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति १३. बोल सम्पूर्ण । तथा भगवती श० १२ उ० २ एहवो को छै । ते पाठ लिखिये छै।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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