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________________ २०४ भ्रम विध्वंसनम्। . - ने. अ० आपण श्रात्मा प्रते भावी ने, ब० घणा वर्ष. सा० चारित्र पाली ने. मा० मास नी. स० सलेखणाइं. स. साठ, भ० भात पाणी. अ० अणसणा. यावत् छेदी ने. श्रा० आलोइ. ५० पडिकमे. स० समाधि प्राप्ति. उ० ऊर्द्धव चन्द्रमा. जा० यावत , ३० अवेयक. विवानवालना. स. शयन प्रते. वि० व्यति क्रमी ने. सर्वार्थ सिद्धि. म. महा विमान में विषे. दे० देवता पणे, उ० उपजस्ये. अथ अठे इम फह्यो-गोशाला रो जीव विमल बाहन राजा सुमंगल अनगार रे माथे तीन चार रथ फेरसी। तिवारे सुमंगल अनगार कोप्यो थको तेजू लेश्या मेली भस्म करसी। ते सुमंगल अनगार सर्वार्थसिद्धि जइ महावदी में मोक्ष जासी। इहां सुमंगल अणगार घोड़ा सारथी राजा रथ सहित सर्व में भस्म करसी। पहयूं कह्यो पिण तेहनों प्रायश्चित्त चाल्यो नथी। जिम मनुष्य मासा एहवो मोटो अकार्थ कीधो तेहनों पिण प्रायश्चित्त चाल्यो न थी। तिम भगवन्ते लब्धि फोड़ी तेहनों पिण प्रायश्चित्त चाल्यो .न थी। जिम सुमंगल आराधक कह्यो, सर्वार्थ सिद्धि नी गति कही। ते माटे जाणीई प्रायश्चित्त लियो इज होसी। तिम लब्धि फोड्यां उत्कृष्टी ५ क्रिया कही ते माटे :इम जाणीइ भगवन्त लब्धि फोड़ी तेहनों पिण प्रायश्चित्त लियो इज हुस्यै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति ६ बोल सम्पूर्ण । धली केतला एक इम कहे-सुमंगल अनगार में तो “आलोइय पडिक्कते" ५ पाठ कह्यो। तिणसू लब्धि.फोड़ी तिणरो प्रायश्चित्त चाल्यो। पिण भगवन्त ने प्रायश्चित्स चाल्यो नहीं इम कहे तेहनों उत्तर-"आलोइय पडिक्कते" ए पाठ लब्धि फोड़ी तेहनों नहीं है। ए तो घणा वर्षा चारित्र पाली मास नों संथारो करी पछे “आलोइय पडिक्कते" ए पाठ कह्यो। ते तो समचे पाठ छेहला अवसर नों चाल्यो छै। ए छहला अवसर नों "आलोइय पडिक्कते' पाठ तो घणे ठिकाणे काया छै । ते केतला एक लिखिये छ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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