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________________ लन्धि अधिकारः। movww खगो छै अथवा स्त्रीज छै. इत्यादिक निश्चय रूप इत्यादिक पूर्वोक्त बोलना करणहार. वि० वीर्य जीव नी शक्ति विस्तारवा रूप लब्धि विशेष. वि० वैक्रिय शक्ति रूप तेहनी लब्धि गुण विशेष अं० अवधि मर्यादा सहित जाणवा स्वरूप ज्ञानशक्ति रूप नी लब्धि गुण विशेष ते सम्यक प्रकार नी उपनी. त• तिवारे पछे. से० ते अंवड परिव्राजक. ता० पूर्वोक्त चोर्य लब्धि जे उपनी तियो करी वैक्रिय लंब्धि रूप करवा सम्बंधी तिणे करो तथा. प्रो० अवधि मर्यादा सहित ज्ञान ते अवधि ज्ञान रूप लब्धि तिणो करी. स० सम्यक प्रकारे ए त्रिण ने विषे ऊपनी. ते जन विस्मापन हेतु. के० कंपिल्लपुर नामा नगर ने विषे एक सौ गृहस्थ ना घर तिहां जाव शब्द थकी अनेराई बोल. व० वसति वास करी रहिवो करे छै. ते० तिण अर्थे प्रयोजन कहिए है. गो गोतम ! इम कहिए है अम्बढ़ सन्यासी जा० जाव शब्द थी वीजाइ बोल वसति वास करी रहियो करे छ. अथ अठे ए अम्वड सन्यासी चैमिव लन्धि फोड़ी सौ घरां पारणो कियो सौ घरां वासो लियो. ते लोकां में विस्मय उपजावणं निमित्ते कह्यो, पिण धर्म दिपावण निमित्ते, तो कह्यो नथी। ए विस्मय ते आश्चर्य उपजायण निमित्ते ए कार्य कियो छै। इम लब्धि फोडयां धर्म दिपे नहीं। भगवान है बड़ा २ साधु लब्धि धारी थया त्यां उपदेश देई तथा धर्म चर्चा करी तपस्या करी में मार्ग दिपायो पिण वैक्रिय लब्धि फोड़ी ने मार्ग दिपायो चाल्यो नहीं। डाहा हुचे तो विचारि जोइजो । इति ७ बोल सम्पूर्ण। तथा विस्मय उपजायां तो चौमासिक प्रायश्चित्त कह्यो छै। ते पाठ लिखिये छ। जे भिक्खू परं विम्हावेइ, विम्हावतं वा साइजइ । (निशीथ उ० ११ बो० १७२ ) जे.जे. भि. साधु साध्वीः प०अनेरा में विस्मय उपजावे. वि० तथा विस्मय उपजातां ने सा अनुमोदे. तेहने पूर्ववत् चातुर्मासिक प्रायश्चित आवे.
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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