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________________ अनुकंपाsधकार | To एक मास नी भिक्षु साधु नी प्रतिज्ञा १० प्रतिपन्न अ० साधु ने के० कोई एक उपाश्रय में विषे. अ० अग्निकाय करी वले. नो० नहीं तेहनें कल्पे न० ते अनि उपाश्रय माही घावो. प० ते माटे उपाश्रय माहे थी. णि० निकलवो. प० बाहिर थी माहे पेसवो. त० तिहां के० कोई पुरुष व० पडिमाधारी ना बध ने श्रर्थे ग० खङ्गादिक ग्रही नें श्रा० थावे जा० यावत्. गो० नहीं. से ० ते कल्पे. अ० शस्त्र नों पकड़वो. वा० अथवा प० रोकवो, क० कल्पे आ० यथा ईयोइ चालवो १३१ अथ इहाँ तो कह्यो । A दया आणी नें वाहिरे निकलवो । पड़िमाधारी रहे ते उपाश्रय में विषे कोई अग्नि लगावे तो ते अग्नि आश्री निकलवो न कल्पे । ए तो अग्नि नों परिषह खमवो कह्यो । हिवे वली बध परिषह उपजे ते पिण सम्यग् भावे खमवूं एह कह्यो "तत्थ तिहां पड़िमाधारी रहे ते उपाश्रय ने विषे कोई पुरुष “वहाय" कहितां बध ते द्दणवा ने अर्थे "गाय" कहितां खड्गादिक ग्रही नें हणे तो तेहना खड्गादिक अवलंब वा पकड़वा न कल्पे । एतले पड़िमाधारी नें हणे तो तेहना शस्त्रादिक पकवा न कल्पे. “कप्पइसे आहारिपंरियत्तए" कहितां कल्पे तेहनें यथा ईर्याई चालवो । इम अग्नि परिवह. वध परिवह. ए दोनूं जुआ २ छै । इहां कोई झूठ वोली कहे - साधु रहे तिहां कोई अग्नि लगावे. तिहां कोई बघ ने अर्थे आवे तो साधु विचार कदाचित् ए वल जाय. इम तेहनी कल्पे वो झूठ बोले छै पिण सूत्र में तो एहवो कह्यो न थी । जे अग्नि में तो साधु वले छै । वली तिहां मारवा में अर्थ आवा रो कांई काम छै । अग्नि में वले तिहां वली वध ने अर्थे किम आवे इहां अग्नि नों परिषह तो प्रथम खमवो कह्यो । तिहाँ सेंठों रहियो । अनें वीजी वार जो कदाचित् बध परिषह उपजे तो ते बध परि पण खमवो कह्यो । तिहां सेंठों रहित्रो ए तो दोनू परिषह उपजे ते खमना har | पण वध परिषह थी डरतो निकले नहीं । वली केइ अजाण कहे - साधु अग्निमें चलता ने अग्नि आश्री निकलवो नहीं । अनें तिहां कोई सम्यग्दृष्टि दयावन्त वह पकड़ने बाहिरे काढ़ े तो तेहनी दया आणी ईर्या सूं निकलवो कल्पे । इम कहे पाठ में पिण विपरीत कहे छे ते किम-सूत्र में तो “वहाय गहाय" एहवो पाठ है। तिहाँ वहाय रे ठामे "वाहाय गाहाय" एहवो पाठ कहे छै । पिण सूत्रमें तो वहाय पाठ कह्यो । पिण वाहाय पाठ तो कह्यो नथी । ठाम ठाम जूनी पर्त्ता में वहाय पाठ है । वली दशाश्रुत स्कंध नी टीका में पिण "वहाय" पाठ से इज अर्थ कियो for "बाहाय" ये पाठ से अर्थ न कियो । ते टीका लिखिये छै । 1 I
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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