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________________ दानाऽधिकारः। - जे भिक्खू अण्णउत्थिएणवा गारथिएणवा असणंवा ४ देयइ देयन्तंवा साइज्जइ ॥ ७८ ॥ जे भिक्खू अण्णउत्थिएणवा गारथिएणवा वत्थंवा पडिग्गहंवा कंवलंवा पाय पुच्छणंवा देयइ देयन्तं वा साइज्जइ. ॥ ६ ॥ (निशोथ उ० १५ बो० ७८-७६ ) जे जे कोई. भि. साधु. साध्वी. अ. अन्य तीर्थी ने. गा० गृहस्थ ने म.प्रथनाविक ४ प्राहार देवे. दे० देवतां .. सा० अनुमोदे. ॥ ८ ॥ जे जे कोई. भि० साधु. साध्वी. अ० अन्य तीर्थी. गा० गृहस्थ ने. व० वस्न. पा. पात्र. क० कांवलो. पा. पाय पूछणों रजो हरण. दे० देवै. दे० देवता नें. सा• अनुमोदे. ॥ ७ ॥ अथ इहां गृहस्थ ने अशनादिक दियां, अने देतां ने अनुमोद्यां चौमासी प्रायश्चित कह्यो छै। अने श्रावक पिण गृहस्थ इज छै ते माटे गृहस्थ नों दान साधु ने भनुमोदनों नहीं। धर्म हुवे तो अनुमोद्या प्रायश्चित क्यूं कह्यो। धर्मरी सदा ही साधु अनुमोदना करे छ। तिवारे कोई इहाँ अयुक्ति लगावी कहे । जे साधु गृहस्स ने अशनादिक देवे तो प्रायश्चित-अनें गृहस्थ में साधु देवे तिण ने भलो जाण्या प्रायश्चित छै । परं गृहस्थ में गृहस्थ देवे तेहनी अनुमोदना नों प्रायश्चित नहीं। इम कहे तेहनों उत्तर-इण निशीथ ने पनर में १५ उद्देशे एहवा पाठ कह्या छै। “ भिक्खु सचित्तं अंब भुंजइ भुंजंतंवा साइजइ" इहां कह्यो सचित्त आंबो भोगवे तो अनें भोगवतां ने अनुमोदे तो प्रायश्चित आवे। जो साधु भोगवतो हुवे तेहनें भनुमोदणों नहीं, तो गृहस्थ आंबो भोगवे तेहने साधु किम अनुमोदे। जो गृहत्य रा दान ने साधु अनुमोदे तो तिण रे लेखे आंबो गृहस्थ भोगवे. तेहने पिण अनुमोदणो-अनें जो गृहस्थ आंबो भोगवे. तेहनें अनुमोद्यां धर्म नहीं, तो गृहस्थ ने दान देवे ते पिण अनुमोद्यां धर्म नहौं । अ जे कहे साधु गृहस्थ ने दान देवे नहीं भनें साधु गृहस्थ ने देतो हुवे तेहनें अनुमोदनों नहीं। एहवो ऊधो अर्थ करे तेहने लेखे इसा सैकड़ा पाठ निशीथ में कह्या छै, ते सर्व एक धारा छ। जे गृहस्थ
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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