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________________ पूज्य श्रीडाल गणीके अनन्तर अष्टम पट्ट पर वर्तमान समय में श्रीकालूगणी महाराज विराजते हैं। जिन मनुष्यों ने आपका दर्शन किया होगा वे अवश्य ही निष्पक्ष रूप से कहेंगे कि आपके समान बालब्रह्मचारी तेजस्वी और शान्ति मूर्ति इस समय में और दूसरा कोई नहीं है। आपकी मूर्ति मङ्गल मयी है अतः आपने जिस समय से शासन का भार उठाया है तभी से इस समाजकी दिन प्रति दिन उन्नति ही हो रही है। आपके अपूर्व पुण्य पुञ्ज को देख कर अनेक नर नारी "महाराज तारोमहाराज तारो" इत्यादि असङ्ख्य कारुण्य शब्दों से दीक्षा ग्रहण करने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं तथापि आप उनकी विनय. क्षमा. पूर्ण वैराग्य. कुलीनता. आदि गुणों की जव तक भले प्रकार परीक्षा नहीं कर लेते हैं दीक्षा नहीं देते। आपकी सेवा में सर्वदा ही नाना देशों से आये हुए अनेक उच्च कोटि के मनष्य उपस्थित रहते हैं । और आपके व्याख्यानामृत का पान करके कृत कृत्य हो जाते हैं। आपने समस्त जिनागम का भले प्रकार अध्ययन किया है यह कहना अत्युक्ति नहीं होगा कि यदि ऐसा गुण वाला साधु चौथे आरे में होता तो अवश्य ही केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता। आप संस्कृत व्याकरण काव्य कोष आदिक विविध विषयों में पूर्ण विद्वान् हैं। और व्याकरण में तो विशेष करके आपका ऐसा पूर्ण अनुभव हो गया है कि जैन व्याकरण और पाणिनि आदि व्याकरणों की समय २ पर आप विशेष समालोचना किया करते हैं। कई संस्कृत के कवीश्वर और पूर्ण विद्वान् आपकी बुद्धि विलक्षणता को देखकर आपकी कीर्ति ध्वजा को फहराते हैं । और दर्शन करके अतिशः कृतार्थ होते हैं । यह ही नहीं आपनें वैष्णव धर्मावलम्बी गीता आदि ग्रन्थों का भी अवलोकन किया हुआ है। और अन्य सम्प्रदायकी भी भली बातों को आप सहर्ष स्वीकार करते हैं। आप अपने शिष्य साधुओंको संस्कृत भी भले प्रकार पढ़ाते हैं । आपके कई साधु विद्वान् और संस्कृत के कवि हो गये हैं। आपके शासन में विद्या की अतीव उन्नति हुई है । आपका ऐसा क्षण मात्र भी समय नहीं जाता जिसमें कि विद्या संबन्धी कोई विषय न चलता हो। आपकी पञ्च महाबत दृढता की प्रशंसा सुनकर जैन शास्त्रोंका धुरन्धर विज्ञाता जर्मन देश निवासी डाकर हर्मन जैकोबी आपके दर्शनार्थ लाडणं नामक नगर में आया और आपसे संस्कृत भाषा में वार्तालाप किया आपके मुखारविन्द से जिनोक्त सूत्रों के उन गम्भीर विषयों को सुनकर जिनमें कि उसको भ्रम था अति प्रसन्न हुआ ! और कहने लगा कि महागज ! मैने आचाराङ्ग के अंग्रेजी
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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