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________________ भ्रम विश्वसनम्। - इटा भगवती नी वृत्ति में पिण इम कह्यो। जे घर ना द्वार जड़े नहीं ते भला दर्शन रे सम्यक्त्व ने लाभे करी। पिण किणही पाषंडी थी डरे नहीं। जे पाषंडी आवी तेहना स्वजनादिक ने पिण चलावा असमर्थ. कदाचित् कोई पाषंडी भावी चलावे। पहवा भय करी किमाड़ जड़े नहीं। इम कह्यो छै। तथा वली उवाई नो बृत्ति में पिण वृद्ध व्याख्यानुसारे इमज कह्यो छै। ए तो सम्यक्त्व नों सेंठा पणो बखाण्यो। तथा सूयगडाङ्ग :श्रु० २ ० २ दीपिका में पिण इम हिज कह्यो छै। ते दीपिका लिखिये छ। अवगुंय दुवारेति-अप्रावृतानि द्वाराणि येषां ते तथा सन्मार्गलाभान कुतोपि भयं कुर्वन्ती त्युद्घाटित द्वाराः ।। ___ इहाँ सूयगडाङ्गनी दीपिका में पिण कयो । भलो मार्ग सम्यग दृष्टि पाभ्या ते माठे कोई ना भय थकी किंवाड़ जड़े नहीं। इहां पिण सम्यक्त्व नों दृढपणो वखाणयो। तथा वली सूयगडाङ्ग श्रु० २ ० ७ दीपिका में कह्यो। ते दीपिका लिखिये छ। अवगुंय दुपारेति-अप्रावृत मस्थगितं द्वारं गृहस्य येन सो ऽ प्रावृतद्वारः पर तीथिकोऽपि गृहं प्रविश्य धर्मयदि वदेत् वदतु वा न तस्य परिजनोपि सम्यक्त्वाचालयितुं शक्यते तद्भीत्या न द्वार प्रदान मित्यर्थः । इहां पिण कह्यो। जे परतीयीं घर में आवी धर्म कहे। ते श्रावक ना परिजन ने पिण चलावा असमर्थ, ए सम्यक्त्व में सेंठों ते माटे पाषंडी रा भय थकी कमाड़ जड़े नहीं । इहां पिण सम्यक्त्व नों सेंठा पणो बखाणयो। पिण इम न कह्यो । असंयती ने देवा ने अर्थे उघाड़ा वारणा राखे । एहवो कह्यो नहीं । ए तो '"अवंगुय दुवार' नों अर्थ टीका में पिण सम्यक्त्व नों दृढपणो कह्यो । तथा भिक्षु ते साधु री भावना रे अर्थे वारणा उघाड़ा राखना कहे तो ते पिण मिले। ते किम-- साधु ने वहिरावा नों पाठ आगे कह्यो छै। ते माटे ए भावना रो पाठ छै। अने असंयती भिख्यारी रे अर्थे उघाड़ा वारणा कह्या हुवे. तो भिख्याखां ने देवा रो पिण पाठ कहिता । ते भिख्यासां ने देवा रो पाठ कह्यो न थी। “समणे निग्गंथे
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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