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________________ भ्रम विध्वंसनम् । - - - - - - ___ अथ इहाँ कह्यो महारंभी. महापरिग्रही. मांस खाय. पंचेन्द्रिय हणे ते नरक जाय. तो चेडो राजा वरणनागनतुओ इत्यादिक घणा जणा संग्राम करी मनुष्य मासा पिण ते तो नरक गया नहीं। तथा वली भग० श. २ उ० १ बारह प्रकारे वाल मरण थी अनन्ता नरक ना अब कह्या तो वाल मरण रा धणी सघलाइ तो नरक जाव नहीं। वली ली आदिक लेव्यां थी दुर्गति कही तो श्रावक पिण स्त्री आदिक सेवे परं ते तो दुर्गति जाय नहीं। ए तो माटा कर्त्तव्य ना समचे माठा फल बताया छै। ए मारा कर्तव्य लो दुर्गतिना इस कारण छै। अने जो और करणीरा जोरसूं दुर्गति न जाय तो पिण ते माठा कर्त्तव्य शुद्ध गति ना कारण न कहिये ते तो दुर्गति ना इज हेतु छ। मांस मद्य भखै स्त्री आदिक सेवे वाल मरण मरे ए नरक ना कारण कया। शिलविध जिमावे एपिण नरक ना कारण छै। अनेज इहां मिथ्यात्व करी नरक कहे तो मिथ्यात्व तो घणारे छै। अने सर्व मिथ्यात्वी तो नरक जाये नहीं। कोइ मिथ्यात्ती देवता पिण हुवे छै। जे देवता हुने ते और करणी सूं हुवे । परं मिथ्यात्व तो नरक नो हेतु इज छै। तिम वित्र जिमाये ते नरक नो हेतु कह्यो छै तो पुण्य किम कहिये। उपदेश में पाप कह्यां अन्तराम किम कहिये । इम कह्याँ अन्तराब पड़े तो आईमुनि भग्गु ना पुत्रांने. नरक न काहिता अन्त राय थी तो ते पिण डरता था। पर अन्तराय तो वर्तमान काल में इज छै। उपदेश में कह्यां अन्तराय न थी : डाहा हुवे तो बिचारि जोइनो। इति १२ बोल सम्पूर्ण । न्याय थकी वली कहिये छै । कोई कहे मौन वर्तमानकाल में किहां कही छै । तेहनो जबाब कहे छै। जेयदाणं पसंतंति-बह मिच्छति पाणियो जयणं पड़िसंहति-वित्तिच्छेयं करन्ति ते ॥२०॥ दुहओ विहे ण भासंति-अत्थि वा णत्थि वा पुणो आयं रहस्स हेचाणं-निवारणं पाउणंति ते ॥२१॥ (सूयगडांग श्रु० १ अ० ११ गा० २०-२१ ) ___ जे जती घसा जीवां ने उपकार थाइ छै. इम जाणी ने. दा. दान ने. प्रशंसे. व. ते. परमार्थ ना अजाण. बच हिंसा. इ० इच्छे वांच्छे. पा० प्राणो जीव नो. जे गोतार्थ दान
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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