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________________ दानाऽधिकारः। आर्द्र मुनि बोल्या अहो ब्राह्मणों ! जे मांसना गृद्धी घर घर में विषे मार्जार नी परे भ्रमण करनार एहवा बे हजार कुपात्र ब्राह्मणां ने नित्य जोमाड़े ते जीमाइनहार पुरुष ते ब्राह्मणां सहित बहु घेदनां छै जेहनें विषे एहवी महा असह्य वेदनायुक्त नरक में विषे जाइं अनें दयारूप प्रधान धर्म नी निंदा नो करणहार हिंसादिक पंच -आश्रव नी प्रशंसा नो करणहार एहवो जे एक पिण दुःशोलवंत निर्वती ब्राह्मण जीमाड़े ते महा अन्धकार युक्त नरक में जाई तो जे एहवा घणां कुपात्र ब्राह्मणां ने जीमाड़े तेहनों स्यूं कहिवो अनें तमें कहो छो जे जीमाइनहार देवता धाई तो हमें कहां छां जे एहवा दातार ने असुरादिक अधम देवता में पिण प्राप्ति नहीं तो जे उत्तम विमाणिक देवता नी गति नी आशा तो एकान्त निराशा छ। एहयो आर्द्र मुनि ब्राह्मणां ने कह्यो। तो जोवोनी जे असंयती ने जिमायां पुण्य हुये, तो आर्द्र मुनि पुण्य ना कहिणहार ने क्यूं निषेध्या नरक क्यूं कही। ते उपदेश में पिण पाप कहिणो नहीं तो नरक क्यूं कही। तिबारे केइ अज्ञानी कई- तो ब्राह्मणां ने पात्र बुद्ध जिमाड्यां नरक कही छै। तेहने पात्र जाग्या ऊंची श्रद्धा थी नरक जाय। इम कुहेतु लगावे। तेहने इम कहीजे। इहां तो जिमाड्यां नरक कही छै। अने ब्राह्मण पिण इमहिज कह्यो जे ब्राह्मण जिमाड़े तेहने पुण्य बंधे देवता हुवे हमारा वेद में इम कहो परं इम तो न कह्यो है आर्द्रकुमार! ब्राह्मणां ने पात्र जाण. ए ब्राह्मण सुपात्र छै इम तो कह्यो नहीं । ब्राह्मण तो जिमावा नो इज प्रश्न पियो । तिवारे आदमुनि जिमाड़वा ना फल बताया । जे "भोयए' एहवो पाठ छै । जे ब्राह्मणा ने भोजन करावे ते नरक जाये इम कह्यो पिण दीर्घ संसारी जीव पाठ मरोड़ता शंके नहीं। वली फेई मतपक्षी इम कहे-ए आर्द्रकुमार चर्चा रा बाद में कह्यो छै। ते आर्द्रकुमार किस्यो केवली थो। नरक कही ते तो ताण में कही छै। इम कहे-तेहनें इम कहिणो । आर्द्र मुनि तो शाक्यमति पाषंडी गोशाला ने वौद्धमति ने एक दण्डियां ने हस्ती तापस ने एतला ने जबाव दीधां चर्चा कीधी तिवारे पिण केवल ज्ञान उपनो न थी---ते साचा किम जाण्याँ। गोशालादिक ने जवाब दीधां-ते साचा जाण्या तो कूछो एकिम जाण्यो। ए तो सर्व साचा जाब दीधा छै। अनें झूठो को होवे तो भगवान् इम क्यूं न कह्यो। हे आर्द्रमुनि ! और तो जबाब ठोक दीधा पिण ब्राह्मणों ने जबाब देतां चूपयो “मिच्छामि दुकडं' दे इम तो कह्यो नहीं । ए तो सर्व जबाव सिद्धान्त रे
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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