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बिना अनेरा ने देवे तिहां पिण " पड़िलाभमाणे" पाठ को छते पाठ कहिये
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ततेणं सुदंसणे सुयस्स अंतिए धम्मं सोच्चा हट्ट त गेरहइ २ त्ता परिव्वा सु साइमं वत्थ पड़िलाभेसा
सुयरस अतियं सोयमूलयं धम्म' विपुलेणं असणं पाणं खाइमं विहरइ ।
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ज्ञाता श्र० ५।
त० तिवारे. सु० सुदर्शण सु० शुकदेव ने ने. हर्ष संतोष पामैं सु० शुकदेव ने श्र० समीपे ग्रही ने प० परिव्राजकां ने वि० विस्तीर्ण थको जा० यावत् वि० विचरे ।
अं० समीप सो० शुचि मूल. प्र० अशनादिक श्राहार.
धर्म प्रत सो० सांभली ० धर्म प्रते. गे० ग्रहे प० प्रतिलाभ तो
।
अन कोई कहै शुकदेव तो अशनादिक प्रतिलाभतो, ते
अथ अठे सुदर्शन सेठ शुकदेव सन्यासी ने विस्तीर्ण अशमादिक प्रतिलाभ तो थको विचरे । एहवूं श्रो तीर्थङ्करे कह्यो । ए तो प्रत्यक्ष अन्य तीर्थी ने देवे तिहां पण " पडिलाभमाणे" पाठ भगवन्ते कह्यो । तो ते अन्य तीर्थी ने साधु किम कहिये । ते माटे जे कहे साधु बिना अनेरा नें देवे तिहां "दलएजा" पाठ छौ पण पड़िलाभ माणे पाठ नहीं ते पिण झूठा छ सुदर्शन नों गुरु हुन्तो ते माटे ते सुदर्शन शुकदेव ने गुरु जाणी हिरावतो विचरे । इहां सुदर्शन नी अपेक्षाइ ए पाठ छ । इम कहे तेहनो उत्तर- इहां पडिलाभमाणे" कहितां सुदर्शन गुरु जाणी प्रतिलाभ तो थको विचरे तो. भगवती श० ५ उ० ६ कह्यो अशुभ दीर्घ आयुषो ३ प्रकारे बंधे । तिहां पिण कह्यो, जे साधु नी हेला. निन्दा. अवज्ञा करी अपमान देई अमनोज्ञ ( अप्रीतिकारियो ) आहार "पडिला भित्ता" कहितां प्रतिलाभतो कह्यो । तिरे लेखे ए पिण गुरु जाणी प्रतिलाभतो कहिणो, तो गुरु जाणी हेला निन्दा अवज्ञा कम करे | अपमान देई अनोश ( अप्रीतिकारी ) ज़हर सरीखो आहार गुरु जाणी