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________________ दानाऽधिकारः माहणंवा हीलित्ता निंदित्ता खिंसित्ता गरहित्ता अवमण्णित्ता अण्णपरेणं अमणुगणोणं अप्पोय कारणेणं असणपाण खाइम साइमेणं पडिलाभित्ता एवं खलुजीवा जाव पकरेंति । (भ० श० ५ उ० ६ तथा ठाणाङ्ग ठा० ३ ) ___० किम् भ० हे भगवन्त. जी जीव. ! अ० अशुभ दीर्घ आयुषा प्रति. ५० बांधे हे गौतम ! पा० प्रारमजीव प्रति. अति हणने नै मृषा प्रति व० वोलो ने. लहा० तथा रूप दार देवा जोग म० श्रमण में. प० पोते हणवा थी निवृत्यो छै. अनें दुजानें कहे माहणस्यो ते माहणने ही० हेलणा ने जातिन उघाड़ वू तेरे करी. नि० निन्दामन करोने खि० खिसन ते जन समक्ष ग० गर्हण तेहनीज साखै। अ० अपमान अन ऊभाथाय वू अ. अनेरो एतलावाना माहिलू एक अ० अमनोज्ञ अ० अप्रीति कारक. अ० अशन. पा० पाणी. खा० खादिम. सा. स्वादिम. १० प्रतिलाभी ने ९० इम ख. निश्चय. जी० जीव अशुभ दीर्घायु बांधे। ___ मठ अठे कह्यो। जीवहणे झूठ बोले साधुरी हेला निन्दा अवज्ञा करी अपमान देई अमनोज्ञ अप्रीति कारियो अशनादिक प्रतिलाभे। तेहने अशुभ दीर्घायु षो बंधे पहवू का छै । तो ये साधु जाणी ने हेला निन्दा अवज्ञा किम करे। वली साधु ने गुरु जाणी तेहने अपमान किम करे। वली गुरु जाणी ने अमनोज्ञ अप्रीति कारियो आहार किम आपे। ए तो प्रत्यक्ष देणेवालो धर्म रो द्वेषी छै। साधु ने खोटा जाणो हेला निन्दा अवज्ञा करी अपमान देई अमनोज्ञ अप्रीतिकारियो ज़हर सरीखो आहार देवे छै तिहां पिण “पडिलाभित्ता" एहवो पाठ कह्यो छ । ते माटे जे कहें “पडिलाभमाणे" कहिता गुरु जाणो देवे, एहयूं कहे ते झूठा छै । “पडिलाभमाणे" कहतां देतो थको इम अर्थ छै पिण साधु असाधु जाणाना रो अर्थ नहीं बाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति ४ बोल सम्पूर्ण। वली साधु ने मनोज्ञ आहार वहिरा वे तिहां पिण “पडिलाभमाणे" पाठ छ। ते लिखिये छ। कहणं भंते ? जीवा शुभ दीहाउयत्ताए कम्मं पकरंति. गोयमा ? नोपाणे अइवाएत्ता नो मुसं वइत्ता तहारूवं
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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