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________________ दामाऽधिकारः। कहिणों नहीं । घली कोई ने सामायक पोषो करावणो नहीं । सामायक पोषा में कोई में देवे नहीं । जद पिण इहां अन्तराय कर्म बंधे छै, इम अन्तराय श्रद्ध छै। तो ते पाछे बोल कह्या ते क्यूं सेवे छै । अन्तराय पिण कहिता जाय. अने पोते पिण सेवता जाय। त्यां जीवां में किम समझाविये। अर्ने सूयगडाङ्ग अ० ११ गा० २० अर्थमें वर्तमानकाले निषेध्या अन्तराय कही छै । परं और काल में न कही। साधु गोचरी गयो गृहस्थ रा घर रे वाहिरने भिख्यारी ऊभो छै । ते वर्तमानकाले देखी साधु तिण घरे गोचरी न जाय अनें साधु गोचरी गयां पछे भिख्यारी आवे तो तेहनी अन्तराय साधु रे नहीं । तिम वर्तमानकाले देतो लेतो देखी पाए कह्यां अन्तराय लागे। अनें उपदेश में हुवे जिसा फल बतायां अन्तराय लागे नहीं उपदेश में तो श्री तीर्थङ्करे पिण ठाम २ सूत्रां में असंयती ने दियां कडुआ फल कह्या छै। ते साक्षीरूप कहे छ। भगवती श० ८ उ० ६ असंयती ने अशनादिक ४ सचित्त अचित्त सूझता असूझता दियाँ एकान्त पाप कह्यो ( १ ) तथा सूयगमाङ्ग श्रु० ख०१ अ० ६ मा० ४५ आद्र मुनि विप्र जिमायां नरक कह्या (२) तथा उत्तराध्ययन अ० १२ गा० १४ हरि केशी मुनि ब्राह्मणां ने पाप कारिया क्षेत्र कह्या (३) तथा उत्तराध्ययन अ० १४ गा० १२ पुरोहित भग्गु ने पुत्रां कह्यो विप्र जिमायां तमतमा जाय। (४) तथा उपासक दशा अ० १ आनन्द श्रावक अभिग्रह धास्सो. जे हूं अन्य तीर्थयांने दान देवू नहीं देवावू नहीं। (५) तथा ठाणाङ्ग ठा० ४ उ० ४ कुपात्रा ने कुक्षेत्र कह्मा (६) तथा उपासक दशा अ०७ शकडाल पुत्र गोशाला ने सेज्या संथारो दियो तिहां “णो चेवणं धम्मोतिया तवोतिवा" का (७) तथा विपाक अ० १ गालोढा ने दुःखी देखि गोतम स्वामी पूज्यो । इण कांई कुपात्र दान दीधो तेहना ए फल भोगवै इम कह्यो । (८) तथा सूयगडाङ्ग श्रु०१ अ० ११ गा०२० सावद्य दान प्रशंस्यां छव काय रो घाती कह्यो। (६) तथा सूयगडाङ्ग श्रु १ अ. ६ गा० २३ गृहस्थ ने देवो साधां त्याग्यो ते संसार भ्रमण हेतु जाणो ने छोड्यो इम कह्यो। (१०) तथा निशीथ उ०१५ साधु गृहस्थ ने अशनादिक देवे देतां ने अनुमोदे तो चौमासी प्रायश्चित कह्यो । (११) तथा सूयगडाङ्ग श्रु० १ ० २ श्रावक रौ खाणौ पीणौ गेहणौ अग्रतमें कह्यौ। ( १२ ) तथा ठाणाङ्ग ठाणा १० अव्रत ने भावशस्त्र कह्यो । । १३ ) इत्यादिक भनेक ठामे असंयतो ने दान देवे तेहना कडुआ फल उपदेश में श्री तीथंङ्करे कह्या छ। ते भणी उपदेश में पाप कह्यां भन्तराय लागै नहीं। उपदेश में छै जिसा फल
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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