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________________ मिथयात्वि क्रियाऽधिकारः तत्थणं वाणमन्तरा देवा देवीप्रोय प्रासयंति. स्यन्ति. चिटुंति. णिसीयंति. तुयटुंति. रमंति. ललंति. कोलंति. मोहन्ति, पुरा पोराणाणं सुचिमणाणं सुपरिक ताणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लारणं फलवित्ति विशेषपञ्चणुभवमाणा विहरंति। ( जम्बूद्वीप पणत्ति) त० तिहां. वा. वाणव्यन्तर ना. देवी देवता अने देवांगना. प्रा० सुख पामी घसे छ। स. सूवे लांवी कायाई चि० वैसे ऊंचा चढ़ी ने णि पासा पालटे छै तु० सुखे सूत्रे. २० रमे छै अक्षादिके. ल० लीला को छै को क्रीड़ा करे ? मो० मैथन सेवा करे. पु० पूर्व भवना कीधा सु० सुवीर्णरूडा कीधा. सु० सुपरिपक्व रूडा कोधा धर्मानुष्ठानादि का कल्याणकारी. क० कीधा. क० कर्म क कल्याण फलविपाक प्रते. प० अनुभवतां भोगतां थकां. वि. विचरे है। ___ अथ अठै इम कह्यो। ते वनखंडने विष वाण व्यन्तर देवता देवी पैसे सूवे क्रीडा करे । पूर्व भवे भला पराक्रम फोडव्या तेहना फल भोगवे एहवा श्रीतीर्थकर देवे कह्यो। तो जे वाण व्यन्तर में तो सम्यग्दृष्टि उपजे नहीं व्यन्तर में तो मिथ्वात्वीज उपजे छै । अनें जो मिथ्यात्वीरो पराक्रम सर्वअशुद्ध होवे तो श्रोतीर्थकर देवे इम क्यूं कह्यो । जे वाण व्यन्तरे पूर्वभये भला पराक्रम किया तेहना फल भोगवे छै। ए तो मिथ्यात्वी रा शील तपादिकने विषे भलो पराकम कह्यो छै । जो तिणरो पराक्रम अशुद्ध हुवे तो भगवन्त भलो पराक्रम न कहिता । ए तो भली करणी करे ते आज्ञा माहि छै ते माटे मिथ्यात्वीरो भलो पराक्रम कह्यो। ते ब्यन्तर पूर्वले भवे मिथ्यादृष्टि पणे तप शीलादिक भला पराक्रमे करि व्यन्तर पणे ऊपना । ते भणी श्रीतीर्थंकरे ब्यन्तर ना पूर्वना भवनो भलों पराक्रम करो। तेभला पराक्रमरूप भली करणी ते आज्ञामाहि छ ते करणीने आज्ञा बाहिरे कहे ते महा मूर्ख जाणवा। जे श्रीजिन आज्ञा ना अजाण छै ते प्रथम गुणठाणा रा धणी री शुद्ध करणीने अशुद्ध कहै, साबद्य कहै आज्ञा वाहिरे कहे संसार वधतो कहे। तेहने सावद्य निरबद्य आशा अनाज्ञा री ओलखना नही तिणसू शुद्ध करणीने आज्ञा बाहिरे कह छ ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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