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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/६१ बृहद्भाष्यादि में कहे गये पूजा के ३ भेद (१) पंचोपचारिको (२) अष्टोपचारिकी और (३) ऋद्धि विशेषसे सर्वोपचारिकी। पंचोपचारिकी पूजा-पुष्प, अक्षत, गन्ध, धूप और दीप से की जाने वाली पूजा पंचोपचारिकी कहलाती है। अष्टोपचारिकी पूजा-पुष्प, अक्षत, गन्ध, दीप, धूप, नैवेद्य, फल तथा जल से की जाने वाली अष्टोपचारिकी पूजा पाठ प्रकार के कर्मों का नाश करने वाली है। सर्वोपचारिकी पूजा-जल, चन्दन, वस्त्र, अलंकार, फल, नैवेद्य, दीप, नृत्य, गीत तथा आरती आदि के द्वारा सर्वोपचारिकी पूजा होती है। अन्य अपेक्षा से पूजा के तीन भेद ॥ (१) पूजा की सामग्री स्वयं लाना। (२) पूजा की सामग्री दूसरे से मंगवाना। (३) मन से फल-फूल आदि पूजा की सामग्री लाने का विचार करना । अथवा मन, वचन और काया से (१) पूजा स्वयं करे । (२) दूसरों के द्वारा पूजा कराये और (३) पूजा करने वालों की अनुमोदना करे। . मागम में कहे गए पूजा के चार भेद बतलाये हैं-(१) पुष्पपूजा (२) नैवेद्यपूजा (३) स्तुतिपूजा और (४) प्रतिपत्तिपूजा (आज्ञापालन)। ये चार प्रकार की पूजाएँ भी यथाशक्ति करनी चाहिए। ललितविस्तरा ग्रन्थ में पुष्प, नैवेद्य, स्तुति एवं प्रतिपत्ति पूजा को उत्तरोत्तर प्रधान कहा है। मामिष अर्थात् बढ़िया प्रशन आदि भोग्य वस्तु; गौड़ ने कहा है कि आमिष का अर्थ रिश्वत, मांस, भोग्यवस्तु होता है। प्रतिपत्ति अर्थात् परमात्मा की आज्ञा का यथार्थ पालन। ॐ पूजा के दो भेद * द्रव्य और भाव की अपेक्षा पूजा के दो भेद कहे गये हैं। उत्तम द्रव्यों से जिनपूजा द्रव्यपूजा कहलाती है और जिनेश्वर की आज्ञा का पालन भावपूजा है। पुष्प, गंध आदि पूजा के सत्रह भेद तथा स्नात्र, विलेपन मादि पूजा के इक्कीस भेदों का समावेश अंग, मन और भावपूजा में हो जाता है। * पूजा के सत्रह भेद १. अंग पर न्हवण-विलेपन पूजा २. चक्षु युगल व वासक्षेप पूजा ३. पुष्पपूजा
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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