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________________ श्राद्धविषि/४८ (१४) मत्स्य अण्डक, मकर अण्डक, जार-मार के प्राकार की तरह होकर नाटक करना । (१५) क ख ग घ ङ के आकार की तरह होकर नाटक करना। (१६) च छ ज झ ञ के आकार की तरह होकर नाटक करना । (१७) ट ठ ड ढ ण के आकार की तरह होकर नाटक करना । ..... - (१८) त थ द ध न के आकार की तरह होकर नाटक करना (१६) प फ ब भ म के आकार की तरह होकर नाटक करना । (२०) अशोक, आम्र, जम्बू, कोशम्ब, पल्लव के आकार की तरह होकर नाटक करना। (२१) पद्मनाग, अशोक, चम्पक, आम्रवन, कुन्द, अतिमुक्त श्याम लता के आकार की तरह होकर नाटक करना। (२२) द्रुत (२३) विलम्बित (२४) द्रुतविलम्बित (२५) अंचित (२६) रिभित (२७) अंचितरिभित (२८) भारभट (२६) भसोल (३०) प्रारभट भसोल (३१) उत्पातनिपातप्रवृत्त, संकुचित-प्रसारित, रेचकरचित, भ्रान्त-सम्भ्रान्त (३२) तीर्थंकर प्रादि महापुरुषों के चरित्र के अभिनय से निबद्ध नाटक । इन सबका निर्देश राजप्रश्नीय उपांग में है। ऋद्धिमन्त श्रावक इस प्रकार पूरे आडम्बर सहित प्रभु के दर्शनार्थ जाता है। यदि सामान्य वैभव वाला हो तो अधिक आडम्बर न करते हुए, लोक के उपहास का पात्र न बनते हुए अपनी शक्ति के अनुसार आडम्बरपूर्वक भाई, पुत्र तथा मित्रादि सहित प्रभुदर्शन को जाए। पांच अभिगम जिनमन्दिर में प्रवेश करते समय पांच अभिगमों का पालन करना चाहिए (१) पुष्प, ताम्बूल, सरसों, दूर्वा, छुरी आदि शस्त्र, पादुका, मुकुट तथा हाथी, घोड़े आदि सचित्त-अचित्त वस्तुओं का त्याग । (२) मुकुट को छोड़कर अन्य समस्त प्राभूषणों का प्रत्याग (मुकुट सिवाय अन्य आभूषण पहिनने चाहिए।) (३) लम्बे-चौड़े वस्त्र का उत्तरासंग । (४) प्रभु के दर्शन के साथ ही हाथ जोड़कर, दोनों हाथों को मस्तक पर लगाकर 'नमो जिणाणं' कहना। (५) मन की एकाग्रता। इन पांच अभिगमों के साथ 'निसीहि' कहकर जिनमन्दिर में प्रवेश करना चाहिए। प्रार्ष-वाणी-(१) सचित्त द्रव्य का त्याग। (२) अचित्त द्रव्य का ग्रहण। (३) एक
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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