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________________ श्राद्ध विधि / ४० • ठण्डे जल से स्नान करने के बाद गर्म भोजन और गर्म जल से स्नान करने के बाद aust भोजन तथा स्नान के बाद तैल से मालिश करना योग्य नहीं है । · स्नान करने के बाद देह की कान्ति विकृत हो जाय, परस्पर दाँतों का घर्षण हो, देह में मृतक जैसी दुर्गन्ध आती हो तो तीन दिन बाद मृत्यु समझनी चाहिए । • स्नान करते ही हृदय और दोनों पैर तुरन्त सूख जायें तो छठे दिन निःसंशय मृत्यु समझनी चाहिए । • मैथुनसेवन के बाद, वमन के बाद, चिता के धुएं का स्पर्श हुआ हो, दुःस्वप्न देखा हो तब तथा हजामत कराने के बाद शुद्ध एवं छने हुए जल से स्नान करना चाहिए । • तेल मालिश करने के बाद, स्नान के बाद, भोजन करने के बाद, वस्त्र अलंकार पहनने के बाद, प्रयाण की आदि में, युद्ध में जांते समय, विद्या मंत्र के प्रारम्भ के समय, रात्रि में, संध्या समय, पर्व के दिन तथा नौवें दिन ( जिस दिन हजामत की हो, उसके नौवें दिन ) हजामत नहीं करानी चाहिए । • रोम, दाढ़ी तथा मूंछ के बालों की हजामत एवं नाखूनों की कटाई पक्ष में एक ही बार करनी चाहिए । उत्तम पुरुषों को अपने दाँतों द्वारा अपने नाखून नहीं काटने चाहिए और अपने हाथों से दाढ़ी आदि नहीं करनी चाहिए । स्नान, शरीर की पवित्रता और सुखकारी आदि होने से भावशुद्धि का हेतु है । आंशिक भाग ( चमड़ी ) की ही हेतु भी नहीं है, क्योंकि रोग ग्रस्त अंगों कान, नाक आदि में रहा मैल करते हुए जलस्नान, द्रव्यस्नान 'द्वितीय अष्टकप्रकरण' में कहा है- " जल से देह के क्षण भर के लिए शुद्धि होती है । जल देह की एकान्तशुद्धि का जल से थोड़ी भी शुद्धि नहीं होती है । शरीर में रहे अन्य दूर न होने से तथा अप्काय सिवाय दूसरे जीवों का वध नहीं कहलाता है ।" जो गृहस्थ विधि से स्नान करके देव गुरु की पूजा करता है, उसके लिए द्रव्यस्नान भी शोभनीय है । द्रव्यस्नान भावशुद्धि का हेतु है, यह बात अनुभवसिद्ध है । अप्काय की विराधना आदि का दोष होने पर भी सम्यक्त्व की शुद्धि का हेतु होने से द्रव्यस्नान शुभ है । कहा भी है- " पूजा में अप्काय आदि की हिंसा होती है और शास्त्रों में हिंसा का निषेध है, फिर भी जिनपूजा सम्यक्त्व की शुद्धि का हेतु होने से निरवद्य है ।" देवपूजा के लिए ही गृहस्थ को द्रव्यस्नान की अनुमति है । इससे ' द्रव्यस्नान पुण्य के लिए है, इस प्रकार का जो मत है, उसका निरास हो जाता है । तीर्थं में, किये गये स्नान से भी देहं की ही शुद्धि होती है, परन्तु श्रात्मा के तो एक अंश मात्र की भी शुद्धि नहीं होती है । स्कन्दपुराण के काशीखण्ड के छठे अध्ययन में कहा है- "हजारों बार मिट्टी से, जल से भरे सैकड़ों घड़ों से तथा सैकड़ों तीर्थों में स्नान करने से भी दुराचारी पुरुषों की शुद्धि नहीं होती है ।"
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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