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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/३४७ से बहिन का योग मिल जाय तो इस प्रकार का पति प्राप्त किया जा सकता है । इस प्रकार प्रौत्सुक्य, लज्जा व चिन्ता से युक्त उसके पास से कुमार ने बालिका की भांति वह हंसिनी ले ली। उस हंसिनी ने कहा-“हे कुमारेन्द्र ! हे धीर! हे धीर-धुरन्धर! हे शूरवीर ! तुम दीर्घकाल तक जीमो और विजय प्राप्त करो।" "हे क्षमाशील ! दीन, दरिद्री, भयातुर और अनार्य ऐसी मेरे लिए मापको बहुत दुःख झेलना पड़ा अतः आप उस अपराध को क्षमा करें । वास्तव में, तो उस विद्याधर से अधिक मेरा कोई उपकारी नहीं है, जिसके भय से अनन्त पुण्य से प्राप्त करने योग्य आपकी गोद में बैठने का मुझे अवसर प्राप्त हुमा। धनी व्यक्ति की कृपा से जैसे निर्धन व्यक्ति सुखी होते हैं, वैसे ही हमारे जैसे पराधीन भी आपकी कृपा से दीर्घकाल तक सुखी होते हैं।" कुमार ने कहा-“हे प्रियवादिनी! मुझे कह, तू कौन है ? विद्याधर ने तुम्हारा अपहरण कैसे किया और तू यह भाषा कैसे बोलती है ?" हंसिनियों में शिरोमणि उसने कहा-"विशाल जिनमन्दिर से सुशोभित वैताढ्य पर्वत के शिखर के अलंकार समान रथनूपुर चक्रवाल नगर का पालन करने वाला, स्त्रियों में मासक्त 'तरुणीमृगांक' नामका विद्याधर अधिपति है। एक बार आकाशमार्ग से जाते हुए उसने कनकपुरी नगरी में अशोकमंजरी नाम की राजकन्या देखी। जैसे चन्द्र को देख सागर उछलता है, वैसे लीलापूर्वक झूले में झूलती हुई साक्षात् अप्सरा समान उस कन्या को देखकर, वह एकदम कामातुर हो गया। तूफानी पवन की रचना कर झूले सहित उस कन्या का उसने अपहरण कर लिया। अपने इच्छित की सिद्धि के लिए अपनी शक्ति के अनुसार कौन व्यक्ति प्रयत्न नहीं करता है? कन्या का अपहरण कर उसने उसे शबरसेना नाम की अटवी में छोड़ दिया। वह कन्या मृगली की भाँति भय से त्रस्त बनी मादा क्रौंच की तरह क्रन्दन करने लगी। उसने उसे कहा- "हे सुन्दरि ! तू भय से क्यों काँपती है ? इधर-उधर क्यों देखती है ? तथा आवाज क्यों करती है ? मैं कोई कैद करने वाला, चोर अथवा परस्त्रीगामी नहीं हूँ, किन्तु तेरे असीम भाग्य से वशीभूत बना विद्याधर राजा हूँ। मैं तेरा सेवक बनकर प्रार्थना करता हूँ कि तू मेरे साथ पाणिग्रहण कर और समस्त विद्याधरों की स्वामिनी बन।" ___ "अग्नि के समान दूसरों पर उपद्रव करने वाले कामान्ध लोग ऐसी दुष्ट व अनिष्ट चेष्टा द्वारा पाणिग्रहण करना चाहते हैं, ऐसे दुष्टों को अत्यन्त धिक्कार हो।" इस प्रकार सोचती हुई उसने कुछ भी जवाब नहीं दिया। स्पष्ट रूप से अनिष्ट चेष्टा करने वाले पुरुष को कौन सज्जन पुरुष जवाब देता है ? ___ "माता-पिता तथा स्वजनों के विरह से प्रभी नवीन दुःखवाली है अतः यह बाद में सुख से मेरी इच्छापूर्ण करेगी" इस प्राशा से, शास्त्री जिस प्रकार अपने शास्त्र को याद करता है, उसी प्रकार उसने इच्छापूर्ति करने वाली 'कामकरी' विद्या का स्मरण किया। उस विद्या के प्रभाव से उसके रूप को छिपाने के लिए उसने नट की भांति उस कन्या को तापसकुमार के रूप में बदल दिया। वह विद्याधर अनेक प्रकार के सत्कारों से उसे लुभाता था, परन्तु वे सत्कार उसके लिए
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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