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________________ श्रावक जीवन-दर्शन / २०१ (३) शुकराज - जन्म जिस प्रकार शंकर ने चन्द्रकला को मस्तक पर स्थापित किया है, उसी प्रकार राजा ने अपनी प्रिय पत्नी को पटरानी के पद पर स्थापित किया । युद्ध में जय प्राप्ति के लिए राजा ही मुख्य होता है, सैनिक तो सहायक होते हैं, इसी प्रकार पुत्र आदि की प्राप्ति में धर्म ही मुख्य है, परन्तु मंत्र आदि तो केवल सहायक होते हैं । एक दिन राजा ने निष्कम्प होकर ऋषि के द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए दिये गये मंत्र का विधिपूर्वक जाप किया । सभी रानियों ने एक-एक पुत्र को जन्म दिया। निमित्त कारणों का योग मिलने पर अवश्य ही तत्सम्बन्धी कार्य पैदा होता है। दाक्षिण्य से चन्द्रावती रानी राजा को मान्य होने पर भी पूर्वचिन्तित पतिद्रोह के पाप के कारण पुत्र को प्राप्त न कर सकी । एक बार रात्रि में कमलमाला सो रही थी, तब रानी ने दिव्य प्राप्ति की तरह एक स्वप्न देखा और राजा को निवेदन किया- "हे प्राणेश ! आज रात्रि के समाप्तिकाल में अर्धजागृत अवस्था में मैंने आश्रम में रहे प्रथम आदिनाथ भगवान को प्ररणाम किया तब कृपा करके प्रभु ने मुझे कहा-"हे भद्रे ! इस तोते को तुम ग्रहरण करो, भविष्य में कभी हंस दूंगा ।" - इस प्रकार बोलते हुए तोर्थंकर प्रभु ने दिव्य वस्तु की तरह सर्वांग सुन्दर श्रेष्ठ तोता मेरे हाथ में प्रदान किया । प्रभु की उस कृपा से मुझे चारों ओर से ऐश्वर्य प्राप्ति की तरह अत्यन्त खुशी हुई और उसी समय मैं जाग गयी । हे प्रियतम ! यकायक प्राप्त हुए इस स्वप्न रूपी वृक्ष का क्या फल प्राप्त होगा ? परमानन्द के कन्द को अंकुरित करने वाले इस वचन को सुनकर स्वप्न के फल को जानते हुए राजा ने कहा - "देव के दर्शन की तरह इस प्रकार के स्वप्नों के दर्शन भी दुर्लभ हैं । पुण्यशाली को ही इस प्रकार के स्वप्न आते हैं और वे ही उसका पूर्ण फल पाते हैं ।" "हे प्रिये ! जिस प्रकार पूर्व दिशा चन्द्र-सूर्य को जन्म देती है, उसी प्रकार इस दिव्य स्वप्न के फलस्वरूप तुम दिव्य रूप वाले दो पुत्रों को क्रमशः जन्म दोगी । पक्षिकूल में जिस प्रकार पोपट और हंस श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार तुम्हारे दो श्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न होंगे । भगवान ने प्रसाद दिया है इसलिए वेदो पुत्र अन्त में 'भगवद् तुल्य होंगे, इसमें कोई संशय नहीं है ।" ये वचन सुनकर रानी अत्यन्त प्रसन्न हुई । पृथ्वी अमूल्य रत्न को धारण करती है एवं प्राकाश सूर्य को धारण करता है, उसी प्रकार कमलमाला भी गर्भ को धारण करने लगी । पर्वत की भूमि पर दिव्य रसों से बढ़ने वाले कल्पवृक्ष के कन्द को भाँति राजा द्वारा पूर्ण किये जा रहे सुन्दर व धार्मिक दोहदों से उस रानी का गर्भ वृद्धि पाने लगा । जिस प्रकार पूर्व दिशा पूर्णिमा के चन्द्रमा को जन्म देती है, उसी प्रकार उस रानी ने शुभ दिन, शुभ लग्न और शुभ लग्नांश में तेजस्वी उत्तम पुत्र को जन्म दिया । पटरानी का पुत्र होने से राजा ने उस पुत्र का जन्म महोत्सव बहुत सुन्दर रीति से मनाया ।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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