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________________ श्राद्धविषि/२८२ उसी समय अवसरवादी की तरह आम्रवृक्ष पर बैठा हुआ एक तोता इस प्रकार बोला"मनःकल्पित अहंकार कौनसे क्षुद्र प्राणी को नहीं होता है ? आकाश गिर न जाय इस भय से टिटहरी अपने पैर ऊँचे करके सोती है।" यह बात सुनकर राजा सोचने लगा-"अहो ! यह तोता कितना धृष्ट है ? इस प्रकार गर्व करने वाले मुझको अोछा बता रहा है। अथवा अजाकृपाण, काकतालीय, घुणाक्षरन्याय अथवा खलति बिल्वीय न्याय से स्वभाव से ही, शुद्ध आशय वाले उसने यह बात कही है।" इस प्रकार राजा के विचार करने पर वह पोपट अन्योक्ति से इस प्रकार बोला-“हे पक्षी (हंस) तू कहाँ से आया है ?" पक्षी बोला-"मैं अपने सरोवर से आया हूँ !" मेंढ़क ने कहा"वह सरोवर कितना बड़ा है ? क्या मेरे धाम (कुए) से भी बड़ा है ?" हंस बोला-'हाँ। यह सुनकर मेंढ़क तिरस्कार करते हुए बोला-"अरे पापी! तू मेरे सामने झूठ क्यों बोलता है ?" इस प्रकार कुए में रहा हुअा मेंढ़क, पास में रहे हुए हंस को फटकारता है। इतनी बात कहकर वह तोता बोला, "तुच्छ मनुष्य अल्प वस्तु में भी गर्व कर लेता है। अथवा ऐसा अहंकार करना उसके लिए उचित ही है क्योंकि तुच्छ व्यक्ति को अल्प सम्पत्ति में भी अहंकार आता ही है।" ___ यह बात सुनकर राजा ने सोचा-"सचमुच, अन्योक्ति कहते हुए उसने मुझे कूपमंडूक बना दिया है। आश्चर्य है कि यह तोता मुनीश्वर (आचार्य) की भाँति अत्यन्त ज्ञानी है।" राजा के इस प्रकार सोचने पर वह तोता पुनः बोला-"मूर्तों के सरदार उस ग्रामीण की यह कैसी मूर्खता है जो अपने गाँव को स्वर्ग समझता है, और अपनी झोंपड़ी को विमान समझता है अपने भोजन को स्वर्ग का भोजन समझता है, अपने वेष को दिव्य वेष मानता है, अपने आपको इन्द्र समझता है और अपने सभी परिजनों को देवता समझता है।" इस बात को सुनकर विद्वान् राजा ने सोचा- "इसने तो मुझे एक ग्रामीण (गॅवार) मान लिया है, अतः क्या मेरे अन्तःपुर से भी कोई श्रेष्ठ स्त्री है क्या ?" इस प्रकार विचार करते हुए राजा को वह पोपट बोला-"अधूरी बात मनुष्य के आनन्द के लिए नहीं होती है। हे राजन् ! जब तक तम गांगलीऋषि की कन्या को नहीं देखोगे तभी तक तुम अपने अन्तःपुर की स्त्रियों को श्रेष्ठ मानोगे। तीन लोक में सर्वश्रेष्ठ उस कन्या का सर्जन कर विधाता भी अपने सृष्टि-रचना के श्रम को सफल समझता है। जिसने उस कन्या को नहीं देखा उसका जीवन निष्फल है और उसे देखकर भी जिसने उसका आलिंगन नहीं किया, उसका जीवन निष्फल है। उस कन्या को जिसने देख लिया, उसे अन्य स्त्रियों में प्रेम कहाँ से हो? क्या मालती के फूल को देखकर भ्रमर अन्यत्र राग करता है ? यदि तुम सूर्य की पुत्री समान उस कमलमाला कन्या को देखना और पाना चाहते हो तो शीघ्र ही मेरे पीछे चलो।" इतना कहकर वह तोता शीघ्र ही आकाश में उड़ गया। उसी समय अत्यन्त उत्सुक बने राजा ने अपने नौकरों को कहा, "अरे ! यथार्थ नाम वाले पवनवेग नाम के घोड़े को शीघ्र तैयार करके लायो।" नौकरों ने भी पलाण के साथ वह घोड़ा तुरन्त ला दिया और उस पर बैठकर राजा भी उस तोते के पीछे-पीछे चल पड़ा।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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