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________________ प्रायविधि/२७८ (1) अतिचारों की आलोचना करे । (2) व्रत स्वीकार करे। (3) समस्त जीवों से क्षमायाचना करे। (4) भावित होकर अठारह पापस्थानकों को वोसिरावे । (5) अरिहन्त आदि चार की शरण स्वीकार करे। (6) दुष्कृतों की गर्दा करे। (7) सुकृतों की अनुमोदना करे। (8) शुभ-भावना से प्रात्मा को भावित करे। (9) अनशन स्वीकार करे। (10) पंच परमेष्ठि-नमस्कार मंत्र का स्मरण करे । इस प्रकार की पाराधना से यदि उस भव में सिद्धि न हो तो भी सुदेव व मनुष्य भव को .. करते हुए पाठ भवों में अवश्य सिद्धि होती है। आगम का वचन है-"वह आत्मा सात-आठ भवों से अधिक भव नहीं करती है।" + उपसंहार इस प्रकार जो श्रावक दिनकृत्य आदि छह द्वारों में निर्दिष्ट धर्मविधि का अच्छी तरह से पालन करता है, वह इसी भव में, आगामी भव में अथवा सात-आठ भवों में अवश्य संसार से मुक्त बनता है और शीघ्र ही शाश्वत मोक्षसुख को प्राप्त करता है। इस प्रकार श्री तपागच्छाधिपति श्री सोमसुन्दर सूरि, श्री मुनिसुन्दर सूरि, श्री जयसुन्दर सूरि, श्री भुवनसुन्दर सूरि के शिष्य श्री रत्नशेखर सूरि द्वारा विरचित श्राद्धविषिप्रकरण समाप्त हुना।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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