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________________ श्राद्धविधि/१० हैं। जिस प्रकार प्रवाही प्रशुचि पदार्थ को छूने से ही मनुष्य का शरीर बिगड़ता है उसी प्रकार हितशिक्षा देने वाले को ही जो ठपका देता है, उसे 'खरंटक' समान श्रावक कहते हैं । निश्चयनय मत से खरंटक और सपत्नी (सौत) श्रावकों को मिथ्यात्वी कहा गया है, परन्तु जिनमन्दिर-दर्शन आदि के कारण उन्हें व्यवहारनय से श्रावक कहा गया है । ........ श्रावक शब्द का अर्थ दान, शील, तप और भावना आदि शुभ योग से जो आठ प्रकार के कर्मों की निर्जरा करता . है अथवा जो साधुओं के पास सम्यग् सामाचारी का श्रवण करता है, उसे 'श्रावक' कहते हैं । श्रावक शब्द का यह अर्थ भावश्रावक में ही घटता है। जैसे १. जिसके पूर्वोपार्जित पापकर्म क्षीण होते रहते हैं और जो नित्य व्रतों से युक्त है, वह श्रावक कहलाता है। २. सम्यक्त्व आदि से युक्त और प्रतिदिन साधुजन की सामाचारी का श्रवण करने वाला श्रावक कहलाता है। ... ३. तत्त्वों के चिन्तन से अपनी श्रद्धा को दृढ़ करता है। निरन्तर पात्र में धन का वपन करता है और सुसाधुजन की सेवा के द्वारा पाप का नाश करता है, उसे श्रावक कहते हैं। अथवा श्रद्धा को दृढ़ करता है, प्रवचन का श्रवण करता है, दान देता है, सम्यग्दर्शन से युक्त होता है, पाप का नाश करता है और संयम का आचरण करता है, उसे विचक्षण पुरुष श्रावक कहते हैं । 'जिसकी सच्चे धर्म में दृढ़ श्रद्धा है, वह श्राद्ध (श्रावक) कहलाता है।' यह श्राद्ध शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है। ॥ श्रावक के दिन कृत्य; निद्रात्याग 'नमो अरिहंताणं' आदि पदों के स्मरण से जागृत बना हुआ श्रावक अपने कुल के योग्य धर्मकृत्य-नियम आदि को याद करता है। विशेषार्थ-प्रारम्भ से ही श्रावक को स्वल्प निद्रा वाला होना चाहिए। एक प्रहर रात्रि शेष रहने पर अथवा उससे कुछ कम शेष रहने पर निद्रा का त्याग करना चाहिए। इस प्रकार करने से इस लोक और परलोक सम्बन्धी अनेक कार्यों की सिद्धि होती है। ऐसा न करे तो उपर्युक्त लाभ नहीं होते हैं। लौकिक शास्त्र में भी कहा है कि कर्मकर (नौकर आदि) लोग यदि जल्दी उठेंगे तो उन्हें धन की प्राप्ति होगी। धर्मी लोग यदि जल्दी उठेंगे तो उन्हें पारलौकिक (प्रतिक्रमण आदि) कृत्यों का लाभ मिलेगा। जो लोग सूर्योदय होने पर भी नहीं उठते हैं, उन्हें बुद्धि और आयुष्य की हानि होती है।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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