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________________ श्राद्धविषि/२५२ उचित निवासस्थान होने पर भी जहाँ स्वचक्र, परचक्र का विरोध हो, अकाल, मारी ईति, प्रजाविरोध, वास्तुक्षय आदि से आकुल-व्याकुल हो, उसे भी शीघ्र छोड़ देना चाहिए, अन्यथा त्रिवर्ग की हानि होती है। यवनों का आक्रमण होने पर जिन्होंने दिल्ली छोड़ दी और जो गुजरात आदि में आकर बस गये, उन्होंने त्रिवर्ग की पुष्टि द्वारा उभय जीवन को सफल किया और जिन्होंने दिल्ली नहीं छोड़ी, वे बन्दी बना लिये गये, जिससे वे दोनों भव हार गये। वास्तुक्षय से स्थानत्याग में क्षितिप्रतिष्ठित, चरणकपुर, ऋषभपुर आदि के दृष्टान्त हैं। आर्षवाणी है—क्षितिप्रतिष्ठित, चणकपुर, ऋषभपुर, कुशाग्रपुर, राजगृह, चम्पा तथा पाटलिपुत्र । निवासस्थान को घर भी कहते हैं। घर का पड़ोसी अच्छा होना चाहिए। घर अत्यन्त प्रगट अथवा अत्यन्त गुप्त भी नहीं होना चाहिए। अच्छे स्थान पर विधिपूर्वक बना हुआ परिमित द्वार वाला जो घर होता है, वह घर त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ व काम) की सिद्धि में हेतुभूत होने से योग्य है। खराब पड़ोसी का आगम में इस प्रकार निषेध है--- "दासी, तिर्यंच स्त्री (बकरी, गाय आदि), तालाचर, शाक्य श्रमण, ब्राह्मण, श्मशान, वाघरी, शिकारी, जेलर, चंडाल, मच्छीमार, जुआरी, चोर, नट, नृत्यकार, भाट, वेश्या, कुकर्मकारी के साथ नहीं रहना तथा उनके पड़ोस में भी नहीं रहना चाहिए।" देवकुल के पास रहने से दुःख होता है, चौराहे पर घर होने पर हानि होती है, धूर्त व मन्त्री के घर के पास रहने से पुत्र व धन की हानि होती है। आत्महित के इच्छुक को मूर्ख, अधर्मी, पाखण्डी, पतित, चोर, रोगी, क्रोधी, चांडाल, अहंकारी, गुरुपत्नी के साथ अनुचित सम्बन्ध रखने वाला, वैरी, स्वामिद्रोही, लोभी, ऋषि, स्त्री व बाल हत्यारे के पड़ोस का त्याग करना चाहिए। दुराचारी पड़ोसी के संग से, उनके साथ बातचीत करने से तथा उनकी कुचेष्टाओं को देखने से गुणवान् के गुणों की भी हानि ही होती है । अच्छे पड़ोसी के कारण प्राप्त खीर के दान से संगम शालिभद्र बन गया । अम्बिका देवी पूर्वभव में सोमभट्ट को भार्या थी। उसने पर्व दिन में साधु को अग्रपिंड (इष्टदेव को प्रसाद धरने के पहले दान) दिया। उसकी दुष्ट पड़ोसन ने उसको सास को चुगली खाई। सास ने गुस्से में आकर उसे डांटा और उसके पति को (अपने पुत्र को) बहकाया। अति खुले स्थान में रहना अच्छा नहीं है, क्योंकि पास में किसी का घर नहीं होने से और चारों ओर खुला होने से चोर आदि के पराभव की सम्भावना रहती है। चारों ओर दूसरे मकानों से निरुद्ध होने से अति गुप्त स्थान होने पर मकान की अपनी . ईति बहुधा 6 कही जाती हैं -1) प्रतिवृष्टि, 2) मनावृष्टि, 3) टिड्डी दल, 4) चूहे, 5) तोते और 6) बाहर से आक्रमण ।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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