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________________ श्राद्धविधि/२४४ एक सेठ ने सामुद्रिक यात्रा में जाते समय एक लाख के व्यय से तथा बारह वर्ष के बाद मनोवांछित लाभपूर्वक लौटने पर एक करोड़ के व्यय द्वारा चैत्य में महापूजा की थी। (८) श्रुतज्ञान-भक्ति : पुस्तक में रहे श्रुतज्ञान की भक्ति कपूर आदि द्वारा प्रतिदिन सुकर है। प्रशस्त वस्त्र आदि द्वारा विशेष पूजा प्रत्येक मास की शुक्ल पंचमी के दिन श्रावक को अवश्य करनी चाहिए। इतना करने में भी जो अशक्त हो उसे प्रतिवर्ष एक बार अवश्य करनी चाहिए। इसका विस्तृत वर्णन जन्मकृत्य में ज्ञान भक्ति द्वार में कहेंगे । (६) उद्यापन : नवकार, आवश्यक सूत्र, उपदेशमाला, उत्तराध्ययन सूत्र आदि ज्ञान, दर्शन तथा विविध तप सम्बन्धी उद्यापन में जघन्य से एक उद्यापन प्रतिवर्ष यथाशक्ति अवश्य करना चाहिए। कहा है"उद्यापन करने से लक्ष्मी सार्थक बनती है, तप भी सफल होता है, सदैव श्रेष्ठ ध्यान होता है, भव्य जीवों को सम्यक्त्व का लाभ होता है, वीतराग की भक्ति होती है तथा जिनशासन की शोभा होती है।" उद्यापन करने से ये गुण होते हैं। "तप के समर्थन में जो उद्यापन किया जाता है वह, चैत्य के मस्तक पर कलश चढ़ाने, अक्षत पात्र के मस्तक पर फल चढ़ाने तथा भोजन के अन्त में तांबूलप्रदान के समान है।" शास्त्रोक्त विधि के अनुसार नवकार मंत्र के एक लाख अथवा एक करोड़ जापपूर्वक जिनमन्दिर में स्नात्र-महोत्सव, सार्मिक-वात्सल्य, संघ-पूजा आदि विस्तृत आडम्बर पूर्वक, लाख अथवा करोड़ चावल, अड़सठ चांदी की कटोरी, पट्टी, कलम, मणि, मोती, परवाला, सिक्के, नारियल आदि अनेक फल, विविध पक्वान्न, धान्य, खाद्य तथा स्वाद्य आदि अनेक वस्तुएँ तथा कपड़ा आदि वस्तुएँ रखकर नवकार का, उपधान की आराधना के बाद विधिपूर्वक मालारोपण द्वारा आवश्यक सूत्रों का, उपदेशमाला की पांच सौ चवालीस गाथा संख्यानूसार उतने ही मोदक, नारियल, कटोरी आदि विविध वस्तुओं को रखकर उपदेशमाला का तथा स्वर्णादिभित दर्शन मोदक आदि की लहाणी करके सम्यग् दर्शन का उद्यापन करने वाले ग्रन्थकार के समय विद्यमान थे। मालारोपण विशेष धर्मकृत्य है। यथाशक्ति विधिपूर्वक उपधान तप किये बिना नवकार व इरियावहिय आदि सूत्रों को पढ़ने-गुणने का अधिकार नहीं होने से साधु को योगोद्वहन की तरह श्रावकों को उपधान तप अवश्य करना चाहिए। उपधान की माला ही उपधान का उद्यापन है। ग्रन्थकार ने कहा है-"विधिपूर्वक उपधान तप करके अपने कण्ठ में जो दोनों प्रकार की सूत्र माला (सूत्र यानी आवश्यक सूत्र एवं सूत) को धारण करता है, वह दोनों प्रकार की (भौतिक ऋद्धि एवं मोक्ष ऋद्धि) शिवलक्ष्मी को प्राप्त करता है। उपधान की माला मुक्ति रूपी कन्या को वरने की वरमाला है। सुकृत रूपी जल को खींचने वाली घटीमाला है और मानों साक्षात् गुणमाला है, यह माला पुण्यशाली लोगों के द्वारा ही धारण की जाती है।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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