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________________ श्राद्धविधि/२२० की, आठकर्मों के क्षय के लिए अष्टमी की, ग्यारह अंगों की आराधना के लिए एकादशी की तथा चौदह पूर्वो की आराधना के लिए चतुर्दशी की आराधना कही गयी है।" इन पाँच पर्वतिथियों के साथ पूर्णिमा व अमावस्या को जोड़ने पर प्रत्येक पक्ष में उत्कृष्ट से छह पर्वतिथियाँ पाती हैं। सम्पूर्ण वर्ष में अट्ठाई, चउमासी आदि अनेक पर्व आते हैं। पर्वदिनों में पूर्णतया प्रारम्भ का त्याग शक्य न हो तो भी अल्प-अल्पतर प्रारम्भ से निर्वाह करना चाहिए। सचित्त आहार जीवहिंसा रूप होने से महा आरम्भ है, अतः पर्वदिनों में सर्व सचित्त आहार का त्याग भी करना चाहिए। "(सचित्त) आहार के कारण ही मत्स्य ७वीं नरक भूमि में जाते हैं, अतः सचित्त आहार की इच्छा मन से भी नहीं करनी चाहिए।" पर्वदिनों में स्नान, केशसज्जा, केश-गूथना, वस्त्र-धोना, वस्त्र रंगना, गाड़ी-हल आदि खेड़ना, धान्य आदि के पुलिन्दे बाँधना, यंत्र चलाना, दलना, कूटना, पीसना, पान-फूल-फल आदि तोड़ना, सचित्त खड़ी वणिका आदि पीसना, धान्य वगैरह को काटना, मिट्टी खोदना तथा घर बनाना आदि समस्त प्रारम्भ का यथाशक्ति त्याग करना चाहिए। अन्य किसी उपाय से कुटुम्ब का निर्वाह न होता हो और पर्वदिनों में भी प्रारम्भ करना पड़े तो भी सचित्त का परिहार तो स्वाधीन और सुकर होने से अवश्य करना चाहिए। गाढ़ बीमारी के कारण सर्वसचित्त का त्याग शक्य न हो तो भी नामग्रहण पूर्वक एक-दो की छूट रखकर शेष सर्व सचित्त पदार्थों का त्याग अवश्य करना चाहिए । आसो और चैत्र मास की अट्ठाई आदि प्रमुख पर्वदिनों में पूर्वोक्त नियमों का विशेष करके पालन करना चाहिए। प्रमुख शब्द से चातुर्मासिक, वार्षिक, अट्ठाई तथा तीनों चउमासी चौदस तथा संवत्सरी का भी संग्रह समझ लेना चाहिए। कहा भी है-"संवत्सरी, चातुर्मासिक तथा अट्ठाई की तिथियों में विशेष आदरपूर्वक जिनेश्वर की पूजा, तपश्चर्या व ब्रह्मचर्य आदि गुणों में विशेष प्रयत्न करना चाहिए।" अट्ठाइयों में चैत्र व प्रासो मास की अट्ठाइयाँ शाश्वत हैं। उन दिनों में वैमानिक देवता भी नन्दीश्वर आदि द्वीपों में तीर्थयात्रा व उत्सव आदि करते हैं। कहा भी है-"दो शाश्वत यात्राओं में एक चैत्र मास में और दूसरी पासो मास में आती है। इन दिनों में अट्ठाई आदि महिमा होती है।" इन दो शाश्वत यात्राओं में सभी देव तथा विद्याधर नन्दीश्वर द्वीप में तथा मनुष्य अपने-अपने स्थान में पूजा भक्ति प्रादि करते हैं। दो शाश्वती तथा तीन चउमासी एवं पर्युषण के सहित छह अट्ठाइयाँ होती हैं। जिनेश्वर के गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान व निर्वाण कल्याणक के दिनों में भी यात्रादि करते हैं । ये अशाश्वत यात्राएँ कहलाती हैं। जीवाभिगम में तो इस प्रकार कहा गया है-"बहुत से भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष और वैमानिक देवता तीनों चउमासी तथा संवत्सरी में महिमापूर्वक अढाई महोत्सव करते हैं।" तिथि की प्रामाणिकता है प्रातः पच्चक्खाण के समय जो तिथि होती है, वही प्रमाण गिनी जाती है। लोक में भी
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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