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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/१७१ लोकविरुद्ध व धर्मविरुद्ध कार्यों का त्याग करने से लोकप्रियता पैदा होती है और अपने धर्म का निर्वाह सुखपूर्वक कर सकते हैं। कहा भी है-"लोकविरुद्ध कार्यों का त्याग करने वाला लोगों को प्रिय बनता है। लोकप्रियता यह मनुष्य के समकित रूपी वृक्ष का बीज है।" * धर्मविरुद्ध कार्य * • मिथ्यात्व के कृत्य करना। . • निर्दयता से बैल आदि को बाँधना, ताड़न करना। • बाल आदि के बिना जू आदि को तथा खटमल को धूप में डालना । • मस्तक पर मोटे कंधे से बाल संवारना । • लीख आदि को मारना। . • गर्मी में तीन बार और शेष ऋतु में दो बार मजबूत मोटे वस्त्र से पानी नहीं छानना और उसके संखारे की यतना नहीं करना। • धान्य, इंधन, शाक, तांबूल, फल आदि को अच्छी तरह से यतनापूर्वक साफ नहीं करना। • अखण्ड सुपारी, प्रखण्ड छुहारा, अखण्ड फलियाँ आदि को मुह में डालना। • टोंटी से या धारा से जल आदि पीना। • चलते, बैठते, सोते, स्नान करते, किसी वस्तु को रखते-लेते, रांधते, सांडते, पीसते, मसलते, मल-मूत्र, श्लेष्म, कुल्ले का पानी तथा तांबूल प्रादि डालते यतना नहीं करना । • धर्मकार्य में आदर नहीं करना। • देव, गुरु व सार्मिक से द्वेष करना। • देवद्रव्य मादि का उपभोग करना। • धर्महीन का संसर्ग करना । • धर्मी व्यक्ति की मजाक करना। • अत्यन्त कषाय (क्रोधादि) करना । • अत्यन्त दोषयुक्त क्रय-विक्रय करना । • कठोर कर्म व पापमय अधिकार में प्रवृत्ति करना, इत्यादि धर्मविरुद्ध कार्य हैं। उपर्युक्त मिथ्यात्व आदि की व्याख्या प्रायः अर्थदीपिका टीका में कर दी है। धर्मी व्यक्ति देश-काल आदि के विरुद्ध वर्तन करे तो लोक में धर्म की निन्दा होती है। अतः वह सब धर्मविरुद्ध है। श्रावक को उपयुक्त पांचों विरुद्ध कर्मों का त्याग करना चाहिए।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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