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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/१४१ वृक्ष भी पुनः नव पल्लवित होता है। क्षीण चन्द्रमा भी पुनः पूर्णता को प्राप्त करता है। इस प्रकार विचार करने वाले सत्पुरुष आपत्ति में भी संताप नहीं पाते हैं।" "विपत्ति और सम्पत्ति भी बड़े पुरुषों को ही आती है। कृशता व पूर्णता चन्द्र में ही पाती है, तारामों में नहीं।" "हे आम्रवृक्ष ! फागुन मास ने मेरी समृद्धि हर ली है" इस प्रकार विचार कर तू खेद क्यों करता है ? वसन्त-समय की प्राप्ति के साथ शीघ्र ही तेरी समृद्धि पुनः अवश्य हो जायेगी।" गया धन पुनः प्राप्त होने पर आभड़ सेठ का दृष्टान्त है । 9 भाभड़ सेठ का दृष्टान्त ॥ पाटण में श्रीमाल. ज्ञाति का नागराज नाम का कोटिध्वज श्रेष्ठी था। प्रियामेला नामकी उसकी प्रिय पत्नी थी। जब वह गर्भवती थी, तभी विशूचिका रोग के कारण सेठ की मृत्यु हो गयी। 'श्रेष्ठी के कोई पुत्र नहीं है' यह जानकर राजा ने उसका सब धन ले लिया। सेठानी अपने पिता के घर चली गयी। उसे गर्भप्रभाव से अमारि का दोहद हुआ। पिता ने उस दोहद को पूर्ण किया। क्रमशः उसने पुत्ररत्न को जन्म दिया। उसका नाम 'अभय' रखा गया, परन्तु वह लोक में 'भाभड़' के नाम से प्रख्यात हुआ। __जब वह बालक पाँच वर्ष का हुआ, तब दूसरे बच्चे उसे 'तेरे बाप नहीं है'.."कहकर चिढ़ाने लगे। बालक ने घर पाकर माँ को आग्रह करके पूछा। माँ ने सब बात बतला दी। बाद में माँ के सामने हठ कर आडम्बर सहित वह पाटण गया। वहाँ अपने घर में रहकर उसने व्यापार चालू किया। कुछ समय बाद लाछलदेवी के साथ उसका विवाह भी हो गया। अचानक पूर्व के निधान की प्राप्ति हो जाने से वह पुनः कोटिध्वज बन गया। उसके तीन पुत्र हुए। पुनः किसी दुष्कर्म के उदय के कारण उसकी स्थिति बदल गयी और वह निधन हो गया। उसने अपनी पत्नी को पुत्रों सहित पीहर भेज दिया। आभड़ किसी मणियार के यहां नौकरी करने लगा। मणि को घिसने पर उसे एक पायली प्रमाण जौ मिलते थे, जिसे वह स्वयं पीसकर, पकाकर खाता था। कहा भी है-"जो लक्ष्मी, प्रीति और प्रेमपूर्वक अपनी गोद में बिठाने वाले सागर और कृष्ण के घर भी स्थिर नहीं रही, वह अन्य व्यय करने वाले के घर तो कैसे स्थिर रह सकती है ?" एक बार हेमचन्द्राचार्य भगवन्त के पास इच्छापरिमाण धारण करते वक्त आभड़ बहुत ही संक्षेप करने लगा तब हेमचन्द्राचार्य ने उसे निषेध किया और आखिर उसने नौ लाख द्रम्म के परिग्रह का परिमाण किया। उसके अनुसार अन्य भी वस्तुओं का उसने नियम किया। परिग्रह-परिमाण से अधिक धन हो जाय तो उसे धर्मकार्य में खर्च करने का निश्चय किया। क्रमशः उसके पास पांच द्रम्म इकट्ठे हुए। उसने पाँच द्रम्म देकर एक बकरी खरीद ली,
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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