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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/६३ (15) मन्दिर में घाव आदि की चमड़ी (16) मन्दिर में औषध आदि से पित्त । डालना। गिराना। (17) मन्दिर में वमन करना। (18) मन्दिर में यदि अपना दांत टूट जावे तो श्री मन्दिर जी में ही डाल देना। (19) मन्दिर में ही विश्राम करना। (20) मन्दिर में गाय, भैंस आदि के पाँव में दामन (रस्सी का बन्धन लगाना)। (21) मन्दिर में दांत का मैल डालना। (22) मन्दिर में अाँख का मैल डालना । (23) मन्दिर में नाखून का मैल डालना। (24) मन्दिर में गले का मैल डालना। (25) मन्दिर में नाक का मैल डालना। (26) मन्दिर में मस्तक का मैल डालना । (27). मन्दिर में कान का मैल डालना। (28) मन्दिर में चमड़ी का मैल डालना।. (29) मन्दिर में भूत प्रादि का निग्रह (30) अपने विवाह आदि कार्य के निर्णय करना अथवा राज्य के कार्य का के लिए पंचों की बैठक करना। विचार-विमर्श करना। (31) मन्दिर में घर या दुकान का (32) मन्दिर में राजा आदि के कार्य का हिसाब लिखना। विभाजन करना अथवा स्वजन आदि को देने योग्य धन आदि का बँटवारा करना। (33) अपने द्रव्य (धन) को मन्दिर में (34). दुष्ट प्रासन से मन्दिरजी में बैठना। रखना। (35) मन्दिर में गोबर के छाने सुखाना। (36) मन्दिर में अपने वस्त्र सुखाना । (37) मन्दिर में अपनी दाल सुखाना। (38) मन्दिर में अपने पापड़ सुखाना। (39) मन्दिर में अपनी बड़ी सुखाना, (40) राजा, लेनदार प्रादि के भय से श्री मन्दिर ( यहाँ पर उपलक्षण से करीर, के गंभारे प्रादि में छिप जाना। चिभटी आदि के साग भी समभना चाहिए।) (41) पुत्र-पत्नी आदि के वियोग को (42) मन्दिर में स्त्री, भोजन, राजा तथा देश जानकर मन्दिरजी में रोना सम्बन्धी विकथा (बातचीत) करना। . पीटना करना। ..... (43) मन्दिर में बाण बनाना, इक्षु (44) मन्दिर में गाय, बैल आदि रखना। छीलना अथवा बाण एवं धनुष मादि अस्त्र बनाना। (45) ठण्ड लगने पर मन्दिरजी में (46) मन्दिर में धान्य प्रादि पकाना। अग्नि का सेवन करना।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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