SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण ( १३६ ) किसलय, कालायस और हृदय शब्दों में स्वर सहित यकार का लोप होता है । यथा १ किसलं, किसलयं किसलयम् । कालासं, कालायसं < कालायसम् । महणवसमा सहिआ < महार्णवसमा सहृदया । जाला ते सहिअएहिं घेप्पन्ति जाला ते सहृदयभिः ग्रह्णन्ति । संयुक्त व्यञ्जन विकृति– ( १३७ ) क, ग, ट, ड, त, द, प, श, ष और स व्यञ्जन वर्ण जब किसी संयोग के प्रथम अक्षर हों तो उनका लुक् हो जाता है, और अनादि में वर्तमान शेष वर्ण को २ द्वित्व होता है । उदाहरण । भुक्तं भुक्तम् —क लोप और द्वि ㄡˇˋ सित्थं सिक्थम् —क लोप और थ को द्वित्व । मुत्तं मुक्तम् — लोप और त को द्वित्व । सिणिद्धो दग्धम् —ग लोप और घ को द्वित्व तथा पूर्ववर्ती ध को द । :-ट लोप और प को द्वित्व | सप्पओ षट्पदःसज्जो षड्जो - ड लुक् और ज को द्वित्व । निट् ठुरो निष्ठुर : - प लुक और ठ को द्वित्र । ( १३८ ) म, न और न ये व्यञ्जन यदि संयुक्त के अन्तिम अक्षर हों तो उनका होता है और अनादि में वर्तमान शेष वर्णों को द्वित्व हो जाता है । जैसे लुकू जुग्गंयुग्मम् – म लुक् और ग को द्वित्व । रस्सी रश्मि:- म लोप और स को द्वित्व | सरो स्मरः - म लोप और द्वित्वाभाव । नग्गोग्नः - न लुक् और ग को द्वित्व । भग्गो भग्न: - ,, در 99 99 लग्गो लग्न: - सोमो दसौम्यः - य लुक् और म् को द्वित्व । ६७ -- १. किसलय - कालायस - हृदये यः ८।१।२६९. हे० २. उपरिलोपः कगडतदपशषसाम ३ । १. वर० । ३. अधो मनयाम् ३।२ वर० । ( १३९ ) ल, व, र ये व्यञ्जन संयुक्त के आद्यक्षर हों अथवा — अन्त्याक्षर चन्द्रशब्द को छोड़कर सर्वत्र - संयुक्त के आदि और अन्त में उक्त व्यज्जनों का लुक् होता है और अनादि में स्थित शेष वर्णों को द्वित्व होता है । उदाहरण ४. सर्वत्र लवराम ३।३ वर० ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy