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________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण फलिहा < परिवार के स्थान पर ल, ख के फलिहोपरिघः --र के स्थान पर ल और घ फालिहद्दो < पारिभद्रः -- र के स्थान पर ल तथा द को द्वित्व | काहलो < कातरः- त को ह और र को ल हुआ है । लुक्को रुग्ण- र के स्थान पर ल, ग्ण को क्क हुआ है। अवद्दालं < अपद्वारम् - -अप के स्थान पर अव, व् का लोप, द को द्वित्व और र को ल । भसलो भ्रमरः – संयुक्त रेफ का लोप, म के स्थान पर स और र को ल । - जढलं << जरठम् --र के स्थान पर ल और ठ को ढ होता है तथा यहाँ वर्णविपर्यय होने से जढलं हुआ है । बढलो वरः - ठ को ढ तथा र को ल हुआ है । निठुलो (१२८) स्थूल शब्द के लकार को र होता है । यथा थोर स्थूलम् - संयुक्त स का लोप और ल के स्थान पर र । (१२९) लाद्दल, लाङ्गल और लाङ्गूल शब्दों में विकल्प से ल को ण आदेश होता है । यथा < निष्ठुर:- बू का लोप ठ को द्वित्व तथा र को ल हुआ है । :-ल के स्थान पर ण होता है । णाइलोलाहल:णङ्गलं <लंगलम् — "" ३ णाङ्गूलं < लंगूलम् – ( १३० ) ललाट शब्द में आदि ल को ण होता है । णिडालं, णडालं ललाटम् - ल यथा- के स्थान पर ण, उ का ड और वर्णविपर्यय । ( १३१ ) स्वप्न और नीवी शब्द में व को विकल्प से म होता है। यथा सिमिणो, सिविणो स्वप्नः । नीमी, नवी नवी । ( १३२ ) संस्कृत वर्णमाला के श और ष के स्थान में प्राकृत में स आदेश होता है । यथा 99 ० । ४. स्वप्नीव्र्वा ८।१।२५६. ५. श-षोः सः ८।१।२६०, हे० । " स्थान पर ह । के स्थान पर ह । भ को ह और संयुक्त र का लोप دو १. स्थूले लो रः ८।१।२५५. हे० । २. लाहल - लाङ्गल- लाङ्ग ले वादे ८।१।२५६, हे । ३. ललाटे च ८ । १ । २५७. हे० । ६५
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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