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________________ ६२ अभिनव प्राकृत-व्याकरण (११६ ) विसिनी शब्द के व के स्थान पर भ आदेश होता है। यथा भिसिणी< विसिनी-व के स्थान पर भ और न के स्थान पर ण । (११७) कबन्ध शब्द में व के स्थान पर म और य होते हैं। यथा कमन्धो, कयन्धो< कबन्ध:-ब के स्थान पर म होने से कमन्ध और य होने से कयन्ध रूप बना है। ( ११८ ) विषम शब्द में म के स्थान पर विकल्प से द होता है। यथाविसढो, विसमो< विषमः-म के स्थान पर विकल्प से ढ हुआ है । (११९) मन्मथ शब्द में म के स्थान पर विकल्प से व होता है। यथा वम्महोद मन्मथः–म के स्थान व, संयुक्त न का लोप और म को द्वित्व तथा थ के स्थान पर है। ( १२० ) अभिमन्यु शब्द में म के स्थान पर व और म विकल्प से होते हैं । यथा अहिवन्नू , अहिमन्नू < अभिमन्युः-भ के स्थान पर ह, म के स्थान पर विकल्प से व, विकल्पाभाव पक्ष में म तथा संयुक्त य का लोप और न को द्वित्व, दीर्घ । (१५१ ) भ्रमर शब्द में म के स्थान पर विकल्प से स आदेश होता है। यथा भसलो, भमरो भ्रमरः-संयुक्त रेफ का लोप, म के स्थान पर विकल्प से स और रेफ के स्थान पर लत्व । (१२२ ) पद के आदि में य का ज आदेश होता है । यथाजसो< यश:-य के स्थान पर ज और तालव्य श को दन्त्य स । जमोदयमः–य के स्थान पर ज हुआ है। जाइ< याति–य के स्थान पर ज और त का लोप, इ स्वर शेष । विशेष अवयवोअवयवः-पद के आदि में न रहने के कारण उक्त नियम चरितार्थ नहीं हुआ। संजमो< संयम:-उपसर्ग युक्त होने से अनादि य का ज हुआ है। संजोओ संयोगः- " प्रवजसो< अपयशः-५ का व हुआ है और य का ज तथा तालव्य श का दन्त्य स। १. विसिन्यां भः ८।१।२३८. हे०। २. कबन्धे म-यौ ८।१।२३६. हे । ३. विषमे मो ढो वा८।१।२४१. हे०। ४. मन्मथे वः ८।१।२४२. । हे० । ५. वाभिमन्यौ ८।१।२४३. हे । ६. भ्रमरे सो वा ८।१।२४४. हे। ७. आदेर्यो जः ८।१।२४५. हे० ।। ..
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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