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________________ अभिनव प्राकृत - व्याकरण (ख) निम्न शब्दों में संयुक्त होने के कारण लोप नहीं हुआ वग्गो वर्गः मग्गो मार्गः अको अर्क अग्घो अर्घः ( ग ) निम्न शब्दों में आद्यक्षर होने के कारण उक्त वर्णों का लोप नहीं हुआ - गंधो गन्धः कालो < काल: चोरो < चौरः - औकार के स्थान पर ओकार । जारो <जारः तरू तरुः—रु के हस्व उकार को दीर्घ हुआ है 1 दवो दवः पावं पापम् - द्वितीय प के स्थान पर व हुआ है । (घ) समास में उत्तरपद के आदि का विकल्प से लोप होता है सहअरो, सहचरो सहचर : जलअरो, जलचरो < जलचर: सहआरो, सहकारी सहकार : (ङ) कुछ विद्वानों के मत में क का लोप नहीं होता, बल्कि उसके स्थान पर ग होता है । जैसे एगो एकः आगारो <आकार: ५३ एगत्तणं < एक्त्वम् अमुगो <अमुकः आगर आकर्षः (च) कहीं कहीं आदि में आनेवाले कादि वर्णों का भी लोप देखा जाता है स उ स पुनः सोय, सो सोअ दस च-च का लोप होने पर शेष स्वर अ के स्थान में य श्रुति होने से च काय होता है । इन्धं चिह्नम् – आदि च का लोप ओर ह के स्थान पर ध । < (छ) आर्ष प्राकृत में च के स्थान पर ट पाया जाता है । यथा आउण्टणं आकुञ्चनम् ( १०२ ) क, ग, छ, ज, त, द, प, य और व का लोप होने पर अवशिष्ट स्वर अ या आके स्थान में लघु प्रयत्नतर यकार का उच्चारण होता है । यथानयरं नगरम् - ग का लोप होने पर अवशेष अ के स्थान पर य । कयग्गहो कचग्रहः —च का लोप होने पर अवशेष अ के स्थान पर य । कायमणीकाचमणि: 99 १७ "" रययं रजतम् - ज और त का लोप होने पर अवशेष स्वर अ के स्थान में य । १. श्रवण यश्रुतिः ८।१।१८०. हे० ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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