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________________ अभिनव प्राकृत - व्याकरण ३५ (१४) आदि इकार का संयोग के पर में रहने पर विकल्प से एकार होता है । यथा पेण्डं, पिण्डं पिण्डम् — द्वितीय रूप विकल्पाभाव पक्ष का है । णेद्दा, णिद्दा निद्रा - < सेंदूर, सिंदूरं < सिन्दूरम् - धम्मेलं, धम्मिलं < धम्मिलम् - वेहू, विहू विष्णु: ,, " 33 ވމެ ३. प्रो बदरे देन १।६. वर० । ४. लवणनवमल्लिकयोर्तेन १1७. वर० । 99 "" " " पेट्ठ, पिट्ठ < पृष्ठम् – चेन्हं, चिन्हं चिह्नम् - वेल्लं, विल्लं < विल्लम् "" 39 विशेष - शौरसेनी में पिण्डादि शब्दों में एत्व नहीं होता । अतः पिण्डं, णिद्दा और धम्मिलं ये ही रूप पाये जाते हैं । "3 "" " "" (१५) पथि, पृथिवी, प्रतिश्रुत्, मूषिक, हरिद्वा और विभीतक में आदि इकार के स्थान पर अकार होता है । उदाहरण पहोथि पुहई, पुढवीपृथिवी -ह के स्थान पर ढ होने से पुढवी रूप बना है । पसुआ प्रतिश्रुत् मूसओ मूषिकः < हलद्दी, हलद्दा हरिद्रा - हरिद्रा शब्द में रेफ का ल होता है । बहेडओ विभीतकः - 'वि' की ई के स्थान पर अ हुआ है 1 विशेष- कुछ वैयाकरणों के मत में हरिद्रा शब्द में ईकार के स्थान पर अकार नहीं होता है । अत: हलिद्दी, हलिद्दा ये रूप बनते हैं । ३ (५६) बदर शब्द में दकार सहित अकार के स्थान पर ओकार होता है । यथाबोरं बदरम् - बदरोत्तर अकार और दकार के स्थान पर ओकार हुआ है । (१७) लवण और नवमल्लिका शब्द में वकार सहित आदि अकार को ओकार ४ होता है । यथा लोणंदवणं णोमल्लिआ नवमल्लिका ९. इत एद्वा८।१८५. प्रादेरिकारस्य संयोगे परे एकारो वा भवति । हे० । २. पथि - पृथिवी - प्रतिश्रुन्मूषिक - हरिद्रा - विभीतकेष्वत् ८६६८ । हैं ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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