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________________ २० अभिनव प्राकृत व्याकरण किं + अपि = किंपि किमवि ( किमपि ) तं + अपि = तंपि, तमवि (तदपि ) - (२) पद से उत्तर में रहनेवाले इति अव्यय के आदि इकार का लोप विकल्प से होता है और स्वर के परे रहनेवाले तकार को द्वित्व होता है । यथा किं + इति = किंति ( किमिति ) जं + इति = जंति ( यदिति ) दिनं + इति = दिट्ठति ( मिति ) न जुत्तं + इति = न जुत्तंति ( न युक्तमिति ) स्वर से परे रहने पर तकार को द्वित्व तहा + इति तहात्ति, तहत्ति ( तथेति ) पिओ + इति = पित्ति, पिउत्ति ( प्रियइति ) पुरिसो + इति = पुरिसोत्ति, पुरिसुति (पुरुषइति ) (३) त्यद् आदि सर्वनामों से पर में रहनेवाले अव्ययों तथा अव्ययों से पर में = रहनेवाले त्यदादि के आदि-स्वर का विकल्प से लोप होता है । एस + इमो = एसमो ( एषोऽयम् ) अम्हे + एत्थ = अम्हेत्थ ( वयमत्र ) जर + एत्थ = जइत्थ ( यद्यन्न ) जइ + अहं = जइहं ( यद्यहं ) जइ + इमा = जइमा ( यदीयम् ) अम्हे + एव्व = अम्हेव्व ( वयमेव ) अपवाद - पद से पर में इ के न रहने पर इकार का लोप नहीं होता और न तकार को ही होता है । यथा 'इअ विज्झ-गुहानिलयाए' में इअ - इति के इकार का लोप नहीं हुआ और न तकार को वही हुआ है । इति शब्द जब किसी वाक्य के आदि में प्रयुक्त होता है, तो तकारवाले इकार को अकार हो जाता है । जैसे– ' इति यत् प्रियावसाने' संस्कृत वाक्य के स्थान पर 'इआ जंपि अवसाणे' हो जाता है । १. इते: स्वरात् तच द्वि: ८ । १।४२. पदात् परस्य इतेरादेलु ग् भवति स्वरात् परश्च तकारो द्विर्भवति । हे० । २. त्यदाद्यव्ययात् तत्स्वरस्य लुक् ८ १ ४०. त्यदादेरव्ययाच्च परस्य तयोरेव त्यदाद्यव्यययोरादेः स्वरस्य बहुलं लुग् भवति । हे० ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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