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________________ ४७६ तेम तेम्ब, तिम, तिम्ब< तथा तिह, तिघ ताउ', ताम, तामहिं तावत् तेत्थु तत्तु, तेहिं तत्र ・ तो ततः, तदा दिवेदिवा ध्रुवुध्रुवम् नउ, नाइ, नाव, नं नाह नहि पचलिउ प्रत्युत पश्चात् पछइ पर परम् अवरोप्परं, अवरुप्परं < परस्परम् पाडिक्क, पाडि एक्कं प्राउ, प्राइव, प्राइम्ब, पग्गिम्ब प्रत्येकम् पुणु पुनः मणाउ <मनाकू मं मा रेसि, रेसिं अभिनव प्राकृत व्याकरण शीघ्रम् विणु विना समाणुं < समानम् सव्वेस हे सर्वत्र हुहुरु प्रायः इसी प्रकार, तब तक । वहाँ , वैसे अनन्तर, तब । दिवस | निश्चय परन्तु । आपस में । जानने के अर्थ में । निषेध अर्थ में, इवार्थ में । इसके विपरीत | पीछे | एक-एक । प्रायः, बहुधा । फिर । थोड़ा बिना | समान । 1 निषेधार्थक, मत । ताद बतलाने के लिए । शीघ्र । सब जगह । आवाज करना । तद्धित ( १७ ) अपभ्रंश में संज्ञा से परे स्वार्थ में अ, अड और उल्ल प्रत्यय होते हैं। और स्वार्थिक कप्रत्यय का लोप होता है । स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए ई प्रत्यय जोड़ा जाता है । यथा पथिउ. -अ प्रत्यय जोड़ा गया है १. न डड-डुल्ला: स्वार्थिक-क लुक् च ८।४।४२६ । २. स्त्रियां तदन्ताड्डी : ८।४।४३१ ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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