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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण ४७३ प० ति जाहि जाहि स्त्रीलिङ्ग जादयत्-जो एकवचन बहुवचन जाउ बी० जाउ त० जाई, जाएं, जिए च०,छ० जाहि पं० जाहे स० जाहि আছি सा<तद्-वह एकवचन बहुवचन प० सा, स ताउ, ति बी० ताउ त० तई, तिए, ताए, तए तेहि च०, छ० तिहि, ताहि, तहे ताहि पं० ताह, तहे ताहिं स० ताहि, ताहि . ताहिं कारकिम्-कौन, क्या ? एकवचन बहुवचन प०, वी० का, क कायउ, काउ त० काइ', काए केहि, काहि च०, छ० काहिं, काहि काहि पं० काहे काहिं स० काहि काहिं नपुंसकलिङ्ग-सव्व एकवचन बहुवचन प०, वी० सत्र, सव्वु, सव्वा सव्वाई', सव्वई शेष रूप पुष्टिङ्ग के समान होते हैं। जयत् एकवचन बहुवचन प० जं, ध्र ---- जाइ वी० जं, जु जाई शेष रूप पुल्लिङ्ग के समान होते हैं।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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