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________________ ४७० अभिनव प्राकृत-व्याकरण घेणुधेनु एकवचन बहुवचन घेणु, घेणू घेणुउ, घेणूउ घेणुओ, धेणूओ बी० घेणु, घेणू घेणुउ, घेणूउ, घेणुओ, घेणूओ, घेणु, घेणू त० घेणुए, घेणूए घेणुहि, धेहि च० छ० घेणुहे, घेणू हे घेणुहु, घेणू हु प० घेणुहे, घेणू हे घेणुहु, घेणू हु स० घेणुहि, घेणूहि घेणुहि, घेणूहि सं० धेणु, धेणू घेणुहो, धे]हो वहूदवधू एकवचन बहुवचन प०, बी० वहु, बहू वहूउ, वहुउ, वहुओ, वह को त० वहुए, वहूए वहुहि, वहूहि च० छ० बहुहे, बहू हे वहुहु, वहूहु प० वहुहे, वहूहे वहुहु, वहूहु स. वहुहि, वहूनि वहूर्हि, वहू हिं सं. वहु, वहू वहुहो, वहूहो नपुंसकलिङ्ग के विभक्ति चिह्न एकवचन बहुवचन प० ० बी० शेष विभक्तिचिह्न पुँल्लिङ्ग के समान होते हैं। कमल शब्द एकवचन बहुवचन प० कमलु, कमला, कमल कमलाई', कमलइ कमलु, कमला, कमल कमलाई, कमल शेष रूप पुंल्लिङ्ग के समान होते हैं। हलन्त शब्द अपभ्रंश में नहीं होते। अत: उनके स्थान पर अजन्त हो जाते हैं। अन्तिम हल होने से प्रायः हलन्त शब्द अकारान्त होते हैं। वी०
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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