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________________ प्राकृत-व्याकरण तड < तट, कवड < कपट, सुहड < सुभट–ट के स्थान में ड हुआ है। मढ < मठ, वीढ< पीठ-3 के स्थान पर ढ हुआ है। दीवर द्वीप, पावर पाप-के स्थान पर व हुआ है। (१३ ) अपभ्रंश में कुछशब्दों में अल्पप्राण वर्गों के स्थान पर महाप्राण वर्ग हो जाते हैं। खेलइ < क्रीड, खप्पर कर्पर, नोक्खि < नवक्की–अल्पप्राण क के स्थान पर महाप्राण ख हुआ है। भारथ भारत, वसथिर वसति-अल्पप्राण त के स्थान पर थ हुआ है। फंसह स्पृशति, फरसु< परशु-अल्पप्राण प के स्थान पर महाप्राण फ हुआ है। ( १४ ) अपभ्रंश में दन्त्य व्यञ्जनों में मूर्धन्य व्यञ्जन हो जाते हैं । यथापडिउ< पतित-त दन्त्य वर्ण के स्थान पर मूर्धन्य ड हुमा है। पडायद पताका- ,, , और क के स्थान पर य । गंठिपाल (प्रन्थिपाल-थ के स्थान पर ठ हुआ है। उहइ ८ दहति-दन्त्य द के स्थान पर मूर्धन्य ड हुआ है । खुडिय<क्षुधित-दन्त्य ध के स्थान पर मूर्धन्य ड हुआ है। डोलइ दोलायते-, द के , " डुक्कर < दुष्कर , , वियउढ < विदग्ध-दन्त्य ध के स्थान पर मूर्धन्य ढ हुआ है। (१५) अपभ्रंश में पद के आदि में अवर्तमान असंयुक्त मकार के स्थान में विकल्प से अनुनासिक वकार होता है'। यथा कलु < कमलम्-म के स्थान में विकल्प से सानुनासिक ढं हुआ है। भवरु (भ्रमरः- जिवजिमतिवदतिम ( १६ ) अपभ्रंश में संयोग के बाद में आनेवाले रेफ का विकल्प से लुक् होता है । यथा___जइ केवँइ पावीसु पिउ, यदि कथञ्चित् प्राप्स्यामि प्रियम्-संयुक्त रेफ का लोप हुआ है। (१७) अपभ्रंश में कहीं-कहीं सर्वथा अविद्यमान रेफ भी होता देखा जाता है । यथा " " १. मोऽनुनासिको वो वा ८।४।३६७ । २. वाघो रो लुक ८।४।३९८ । ३. अभूतोऽपि क्वचित् ८।४।३६६ ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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