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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण ४४७ (१४) पैशाची में शौरसेनी का सुज शब्द ज्यों का त्यों रह जाता है। सुजोर सूर्यः-शौरसेनी में यं के स्थान में ज आदेश होता है और पूर्ववती ऊकार को हस्त्र होने से सुज्ज बनता है । पैशाची में भी यही रूप पाया जाता है। (१५) पैशाची में स्वरों के मध्यवर्ती क, ग, च, ज, त, द, य और व का लोप नहीं होता। यथा ठोकरलोक-क का लोप नहीं हुआ। इंगार< अंगार-ग का लोप नहीं हुआ है। पतिभासद प्रतिभास-प्र के स्थान पर प और त का लोप नहीं हुआ। करणीय < करणीय-य ज्यों का त्यों रह गया है । सपथ शपथ-4 का लोप नहीं हुआ। (१६ ) पैशाची में ख, भ, और थ के स्थान पर ह नहीं होता। यथासाखा<शाखा-श के स्थान पर स और ख के स्थान पर ह नहीं हुआ। पतिभास प्रतिभास-म के स्थान ह नहीं हुआ। सपथ < शपथ-प के स्थान में व भी नहीं हुआ और न थ को ह ही हुआ। (१७) पैशाची में ट के स्थान पर ड और 3 के स्थान पर ढ नहीं होता। यथा-भट भट–ट के स्थान पर ट ही रह गया है। मठ मठ-ठ के स्थान पर आ ही रह गया है । (१८) पैशाची में रेफ के स्थान में ल और ह के स्थान में घ नहीं होता। यथा-गरुड< गरुड-र के स्थान में ल नहीं हुआ। रेफ द रेफदाह < दाह-ह के स्थान में घ नहीं हुआ। शब्दरूप (१९) पञ्चमी के एकवचन में आतो और आतु प्रत्यय होते हैं । यथाजिनातु, जिनातो। ( २० ) पैशाची में तद् और इदम् शब्दों में टा प्रत्यय सहित पुल्लिङ्ग में नेन और स्त्रीलिंग में ताए आदेश होते हैं। यथा नेन कतसिनानेन तेन कृतस्नानेन अथवा अनेन । पूजितो च नाएदपूजितश्चानया। वीर शब्द के रूप एकवचन बहुवचन प० वीरो वीरा बी० वीरें वीरे, वीरा त० वीरेन, वीरेनं वीरेहि, वीरेहि
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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