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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण ४२३ ष० जीसे, जाए जासि स. जीसे, जाए जासु सं० हे जा हे जाओ नपुंसकलिङ्ग में शब्दों के रूप प्राकृत के समान ही होते हैं। तद्धित अर्धमागधी में संस्कृत के समान तद्धित प्रत्ययों को अपत्यार्थक, देवतार्थक, समूहार्थक, अध्ययनार्थक, विकारावयवार्थक, अनेकार्थक, मतुबर्थक और स्वार्थिक इन आठ भागों में विभक्त किया जा सकता है। शेषिक प्रत्यय भी अर्धमागधी में पाये जाते हैं । अपत्यार्थक और समूहार्थक ( ३१ ) समूह, सम्बन्ध और अपत्यार्थक बतलाने के लिए इय, अण् और इज्ज प्रत्यय जोड़े जाते हैं। यथा कविलस्स इयं-काविलियं ९ कापालिकम्-कविल + इय-लकारोत्तर अकार का लोप और वृद्धि होने से, विभक्ति चिह्न जोड़ने से उक्त रूप बनता है। उत्तरस्स इम-उत्तरिज औत्तरेयम्-उत्तर + इज्ज–रकारोत्तर अकार का लोप और विभक्तिचिह्न जोड़ने से उक्त रूप बना है। कोसस्स इमं-कोसेज < कौशेयम्-कोस + इज-गुण और विभक्ति चिह्न जोड़ने से। समूहार्थ सगडाणं समूहो-सागडं < शाकटम्-सगड + अ-वृद्धि और विभक्तिचिह्न । वेसालीए अवच्च-वेसालिओ८ वैशालिक: – वेसालियसावए वैशालिकश्रावकः -इय (अ) प्रत्यय जोड़ा गया है । पण्डवस्स भवच्चाणि—पाण्डवा-पाण्डव + अण (अ) पाण्डवा, पण्डवा; इसी प्रकार अण प्रत्यय जोड़ देने से-लाघवं, अजवं, महवं आदि रूप भी बनते हैं। व्यापार या वृत्ति अर्थचोरस्स वावारो—चोजं < चौर्यम्-चोरियं में इज और इय प्रत्यय जोड़े गये हैं। वणियस्स वावारो-वाणिज< वाणिज्यम्-व्यापार अर्थ में इज प्रत्यय । ( ३२ ) अप्पण शब्द से सम्बन्ध बतलाने के लिए इच्चिय और इजिय प्रत्यय होते हैं। यथा अप्पणस्स इयं-अप्पणिच्चियं < आत्मीयम् -अप्पण + इच्चिय = अप्पणिच्चियं; अप्पण + इजिय = अप्पणिजियं । पयातीणं समूहो—पायत्तं पदातम्-पयत्त + अण = पायत्तं ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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