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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण ४२१ इकारान्त शब्दों के अतिरिक्त उकारान्त शब्दों के रूप भी प्राकृत-महाराष्ट्री प्राकृत के समान चलते हैं। पितृ शब्द का प्रथमा के एकवचन में पिता, पिया, पितरो, पियरोः द्वितीया के एकवचन में पितरं, पियरं एवं चतुर्थी के एकवचन में पिउए, पिउस्स और पिउणो रूप बनते हैं। सव्व शब्द के रूप प्राकृत के समान ही होते हैं। क< किम् के शब्दरूप एकवचन बहुवचन प्र० के, को द्वि० के केणं, केण केहि, केहि च० काए केसि प० कम्हा, काओ कओहिन्तो कस्स केसि कस्सि, कसि, कमि, के केसु अयं< इदम् एकवचन बहुवचन प्र० अयं, इमे इणमो, इमो इणं, इयं अणेण, इमेणं, इमेण इमेहि, इमेहि च० इमाए इमेसि इमाओ, इमा इमेहितो अस्स, इमस्स . इमेसि अस्सि, इमंसि, इमंमि इमेसु . एस <एतद् एकवचन प्र० एसो, एसे, ए एए द्वि० एयं तृ० एएणं, एएण एएहि, एएवि च० एयाए एएसि पं० एयाओ, एया एएहितो ष० एएस्स एएर्सि द्वि० इमे स० बहुवचन
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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