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________________ तृ० च० प० ष० स० इण, सा आए, आते ओ. आतो स्स सि, मि अकारान्त जिण शब्द के रूप प्र० द्वि० तृ० एकवचन जिणे जिणं जिणेण, जिणेणं च० जिणाते जिजाए, जिणाओ, जिणातो प० ष‍ जिणस्स स० जिणंसि, जिणम्मि सम्बो० भो जिणे, भो जिणा अभिनव प्राकृत-व्याकरण एकवचन राया राय, रायाणं 29 अणं प्र० द्वि० तृ०. स्वा इर्हितो अणं इसु बहुवचन जिणा जिणे जिहिं, जिणेहि जिणाणं जिणेहिंतो जिणाणं इसी प्रकार गोयम, देव, वीर आदि अकारान्त शब्दों के रूप होते हैं । अर्धमागधी में भगवत् ( भगवन्त) शब्द का प्रथमा के एकवचन में भगवन्तोः मतिमन्त का मतिमं और मतिमन्तो; कार और कारयन्तोः द्वितीया के बहुवचन में भगवन्तो, मतिमन्तो, कारयन्तों एवं तृतीया के भगवा और भगवता रूप बनते हैं । षष्ठी के एकवचन में भगवओ और होते हैं । इन शब्दों के शेष रूप जिण शब्द के समान होते हैं । जिणेसु भोजणे (३०) तार प्रत्यान्त शब्दों में प्रथमा और द्वितीया के ओकार आदेश होते हैं। यथा पसत्थारे, पथारो; कत्तारे, कत्तारो; भत्तारे, भत्तारो एवं तर के स्थान पर आदेश होने से पसत्थुणा, कत्तुणा, भत्तुणा बनते हैं। शेष शब्द रूप जिण शब्द के समान होते हैं । राय शब्द के रूप (राजन् शब्द ) बहुवचन रायाणो राई हि ४१६ भगवं और प्रथमा और एकवचन में भगवतो रूप बहुवचन में एकार और तृतीया के एकवचन रूप भी विकल्प से
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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