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________________ ४१७ अभिनव प्राकृत-व्याकरण बुहो< बुधहे-ध के स्थान पर ह और विसर्ग को एत्व। . रुहिरं< रुधिरं-ध के स्थान पर ह आदेश हुआ है। एहतो एधन्तो-ध के स्थान पर ह हुआ है। खुहा<खुधा-ध के स्थान पर ह आदेश हुआ है। (१८) वर्ज आदि शब्दों में व के स्थान पर विकल्प से उ आदेश होता है । यथा____ आउजो, आवजोआवर्ज: –व के स्थान पर विकल्प से उकार और संयुक्त रेफ का लोप तथा ज को द्वित्व । आउजणं, आवजणंद आवर्जनम्-, (१९) धनु शब्द के स्थान पर विकल्प से धणुहं, धणुक्खं का आगम होता है। धणुह, धणुक्खं, धणुं<धनु: ( २० ) पुट और पुर शब्द के से पकार का लोप विकल्प होता है। यथातालउडं, तालपुडं ( तालपुटं-पकार का लोप, उ स्वर शेष और तकार के स्थान पर ड। गोउर, गोपुरं गोपुरम्-विकल्प से पकार का लोप। (२१) अर्धमागधी में ऐसे शब्द भी प्रचुर परिमाण में उपलब्ध हैं, जिनका प्राय: महाराष्ट्री में अभाव है । यथा अज्झस्थिय, अज्झोवण्ण, अणुवीति, आघवणा, आघवेत्तग, आणापाणू , आवीकम्म कण्हुइ, केमहालय, पच्चस्थिमिल्ल, पाउकुव्वं, पुरथिमिल्ल, पोरेवच्च, महतिमहालिया, वक्क, विउस। ( २२ ) अर्धमागधी में ऐसे शब्दों की संख्या भी बहुत अधिक है, जिनके रूप महाराष्ट्री से भिन्न होते हैं । उदाहरणार्थ कुछ शब्दों की तालिका दी जाती है । अर्धमागधी महाराष्ट्री अर्धमागधी महाराष्टी अभियागम अब्भाअम णिच्च आउंटण आउंचण निएय णिअअ आहरण उआहरण पडुप्पन्न. पच्चुप्पण्ण उम्पि उरिं; अवरिं पच्छेकम्म पच्छाकम्म किरिआ कीस, केस केरिस पुढो (पृथक् ) पुहं, पिह केवञ्चिर किअच्चिर पुरेकम्म पुराकम्म गिद्धि पुवं चियत्त ......--- चइअ माय मत्त, मेत्त २७ नितीय किया पाय पत्त गेहि पुन्वि
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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