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________________ ४०७ अभिनव प्राकृत-व्याकरण त भाणुणा भाणूहि, भाyहि, भाणूहिँ भाणुह भागुह भाणुदो, भाणुदु भाणुत्तो, भाणूओ, भाणूड भाणूहितो, भाणूशंतो भाणुह भाणुह, भाणूण, भाणूणं स० भाणुंशि, भाणुम्मि भाणूशु, भाणूशं सं० हे भाणु, हे भाणू हे भागुणो, हे भाणओ, हे भाणू इसी प्रकार यउ, गुलु< गुरु, शाहु, मेलु < मेरु, कालु < कारु, लाहु दराहु आदि उकारान्त शब्दों के रूप बनते हैं। उकारान्त या इकारान्त शब्दों के रूप मागधी की प्रवृत्ति के अनुसार ही वर्णविकृति कर बनाने चाहिए। व्यञ्जनान्त या शेष स्वरान्त शब्द प्राकृत की शब्दरूपावली में मागधी की प्रवृत्ति के अनुसार वर्णविकृति करने से निष्पन्न होते हैं। मागधी में प्रथमा, चतुर्थी, पञ्चमी और षष्ठी विभक्ति में ही अन्तर पड़ता है। स्पष्टीकरण के लिए अकारान्त पितृ शब्द के रूप भी दिये जाते हैं। पिउ, पिआ, पिआल< पितृ एकववन बहुवचन प०. पिआ, पिअले पिअला, पिउणो, पिअओ वी० पिअलं पिअले, पिअला, पिउणो त० पिअलेण, पिमलेणं, पिउणा पिअलेहि, पिअलेहि, पहि च०, छ० पिअलाह पिअलाह, पिअलाण प० पिअलादो, पिमलादु पिअलत्तो, पिअलाओ, पिअलाहितो, पिअलाशंतो स० पिअले, पिअलंशि, पिऊशु, पिऊशुं पिअलम्मि, पिउंशि. पिउम्मि सं० हे पिअ, हे पिअले हे पिमला, हे पिउणो ___ इसी प्रकार दाउ, दायाल र दातृ का प्रथमा के एकवचन में दायाले, चतुर्थी-षष्ठी के एकवचन में दायालाह और बहुवचन में दायालाहँ, पञ्चमी के एकवचन में दापालादो, दायालादु और सप्तमी के एकवचन में दायालंशि तथा सप्तमी के बहुवचन में दायालेशु, दायालेशुं रूप बनते हैं। ___ मागधी के धातुरूप मागधी की धातुरूपावली शौरसेनी के समान होती है। अतः मागधी के धातुचिह्न शौरसेनी के समान ही हैं। ........
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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