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________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण ( २० ) हस्व अकारान्त शब्द के अन्तिम अकार को सम्बुद्धि पर रहते दीर्घ होता है । यथा ૪૦૪ पुलिशा आगच्छ माशा आगच्छ हे मानुष आगच्छ पढमा बीआ तइआ पंचमी सप्तमी पढमा बीआ तइया चउत्थी पंचमी थी, छट्टी ६, स छट्टी समी संबो एकवचन ए • अनुस्वार ण णं पुरुष आगच्छ – सम्बोधन होने से अकार को दीर्घ । एकवचन वीले वीलं आदो, आदु सि, म्मि वीण, वीले वीलाह, वीलस्स वीलादो, वीलादु वीलाह, वीस वीलंस, वीलम्मि हे वी एकवचन शब्वे शव्वं विभक्तिचिह्न क्षा अ हि, हिं, हि ,, vi तो, ओ, उ, हि, हिन्तो, शुंतो शु, शं वील - वीर शब्द के रूप 99 पढमा वीआ १. प्रदीर्घः सम्बुद्धौ ११।१३ व० । बहुवचन बहुवचन वीला वीला वलेहि, वीलेहिं, वीले हि® वीला, वीलाण, वीलाणं वीलतो, वीलओ, वीलउ, बीलाहिन्तो, बीलाशुन्तो अन्य अकारान्त शब्दों के रूप भी वील शब्द के समान होते हैं । नपुंसक लिङ्ग में शौरसेनी के समान ही शब्दरूप बनते हैं । सर्वनामवाची शब्द मागधी में वील वीर के समान होगें । यहाँ उदाहरण के लिए कुछ शब्द रूप प्रस्तुत किये जाते हैं। 1 शब्द सर्व के शब्दरूप 32 वीला, वीलाण, वीलाणं वीलेशु, वीले हेवीला शव्वा शव्वा बहुवचन
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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